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मघुमिता , भंवरी देवी , फिजा या गीतिका जैसी तमाम खबरों को पढ़कर दिल दहल जाता है .कल कई न्यूज़ चैनलों में दिन भर बहस चली . यहाँ बात शिर्फ़ राजनीति तक सीमित नहीं है , हमें समाज के हर अंग के बारे में विचार करना है . कौन नहीं चाहता सफलता की ऊंचाइयों को छूना . लड़का हो लड़की ,क्या हम ये चाहेगे की हमारा लड़का तो जीवन में सफलता की बुलंदिओं को छुए मगर लड़की केवल चूल्हा चौका करे और घर की चार दीवारी में कैद रहे .शायद नहीं . फिर हम क्यों शिर्फ़ महिलाओं से सीमा के अन्दर रहने की बात करते हैं ? क्यों हम बचपन से लड़कों में भी वे सारे गुण पैदा करने में असफल हैं जो उसे ऊँचे चरित्र वाला एक ऐसा नागरिक बनायें जो अपनी सीमा में रहकर समाज के सभी सदस्यों का एक परिवार की तरह सम्मान करे व स्त्री एवं पुरुष में कोई भेद न करे .इसका एक मात्र कारण जो मेरी समझ में आता है वह यह है की इक्कीसवीं सदी में पहुँच कर भी , अपने आप को ‘सो काल्ड माडर्न ‘ कहने वाले हम लोग आज भी अपनी ओछी सोच से ऊपर नहीं उठे हैं .आज भी हमारे मन में लड़की और लड़के के लिए अलग अलग पैमाने हैं .
असल में आज हम परिवर्तन के एक दोराहे पर खड़े हैं , और भौतिक परिवर्तन के साथ साथ एक मानसिक ट्रांस्फोर्मेसन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं .जन्म जन्मान्तर से हम में मौजूद पुरुषवादी विचारधारा , नारियों के वर्चस्व को खासकर हमारे समान उनकी आजादी को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही . इसी प्रकार सदियों से पुरुष के पीछे चलने वाली नारियों में मौजूद पुरुष पर हावी होने या आगे निकल जाने की नई अकांछा उसे हर संभव प्रयास करने को विवश कर रही है .आज हमारे समाज में व्याप्त उपरिवर्णित अपराध इन्ही दो विचारों का टकराव है .जरुरत है तो इन दोनों विचारधाराओं में सामंजस्य बैठाने की है , ताकि लड़का हो या लड़की दोनों में बचपन से ही एक जैसे विचार विकसित हों .मैं इसी मानसिक ट्रांस्फोर्मेसन की बात कर रहा हूँ . जिस दिन मानसिक ट्रांस्फोर्मेसन की यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी शायद तब हम सब एक सभ्य समाज में परिवर्तित हो जांएगे और हमारे समक्ष ऐसी समस्याएं नहीं आंएगी . आज हमारे सभी अभिभावक , शिक्षक ,धर्मगुरु ,नेता एवं अन्य तमाम बुद्धिजीवी इस प्रक्रिया को यथाशीघ्र संपूर्ण करने में कारगर साबित हो सकते हैं.
तो आइये हम सब यह प्रण करें कि आज से हम, लड़का हो या लड़की सब को एक जैसा व्योहार सिखांयेगे .दया, ममता, प्रेम प्यार धैर्य तथा सहनशीलता जैसे गुण महिलाओं से लिए जाएँ एवं मेहनत , बहादुरी , कर्मठता तथा पुरुषार्थ जैसे अन्य तमाम गुण पुरुषों से लेकर एक सर्वश्रेष्ठ गुण समूह का निर्माण कर बिना लिंग भेद भाव के लड़का हो या लड़की दोनों को इनसे प्रशिक्षित व सुसज्जित किया जाय . इस प्रकार हम अपने आप से यह वादा करें , कि अगली पीढी के लिए हम एक सभ्य समाज की बुनियाद बना कर जांएगे . हिंदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने शायद इन्ही विषमताओं को देखकर ही कहा रहा होगा ,कि ” जिस लड़की में लड़के के गुण आ जाते हैं वह कुलटा बन जाती है एवं जिस लड़के में कुछ गुण लड़की के आ जाते हैं वह एक महान व्यक्तित्व बनकर समाज में उभरता है” .आज हमें इन दोनों में सामंजस्य बनाने की जरुरत है .
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