Yogdan
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सावन सुहावन या क्वांर की उमस ,
चाहे जेठ की दुपहरी का सूरज ललात हो ,
चाहे बरसात या मौसम ठंडात हो ,
इनको तो काम हर काम मन भावत है ,
बोझा उठवाओ चाहे पत्थर तुड़वाओ ,
पूरी लगन से ये माटी खुदवावत हैं ,
कार्य के अभाव में फिरें बेकार सबै ,
एक को बुलाओ जन बच्चे से आवत हैं ,
फावड़ा कुदाल हाथ चलें मियां बीबी साथ ,
झुंड के झुंड बड़ी दूर दूर धावत हैं ,
संग लिए बच्चे बाल कैसे कैसे फटे हाल ,
कभी करें काम शिशु कभी नवजात को खिलावत हैं ,
मिलते ही काम घर इनके त्योहार रोज ,
देखो बिना काम कैसे मातम मनावत हैं ,
काम की शौकीन नस्ल मिलती है ऐसी कहाँ ,
भारत के गांवो से शहरों में आवत है ,
कहती सरकार आज देश है प्रगति पर ,
आर्थिक विभाग के आंकणे बतावत हैं ,
इंडिया बनाने वाले भारत भारत के लोग ,
इक्कीसवीं सदी में कैसे जीवन बितावत हैं ।
देव कुमार जायसवाल
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