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धर्म युद्ध

उद्गार
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धर्म धुरंदर …होते हुए भी युद्ध कौशल से जीते जाते हैं …धर्म ध्वजा बेशक उठायें किन्तु ध्वजा की नोक पैनी रखें दुश्मन पर घुसेड़ देने के लिए राम और कृष्ण ने हमें यही सिखाया है ..चाहे बाली का वध हो या रावण का वध हो या कंस शिशुपाल जरासंध दुर्योधन कर्ण भीष्म द्रोणाचार्य कोई हो …. धर्म आचरण युद्ध में बुद्धि के लोप को बढ़ावा कहीं नहीं देता …!!!

धर्म परायण लोगों ने धर्म की ख़ातिर ही — धर्म स्थापनार्थ ही धर्म को युद्ध – आपात काल के लिए परिभाषित किया है . युद्ध में अधर्मी / विधर्मी का समूल नाश ..यहाँ वह मानवीय पक्ष शेष नहीं रहता … फिर सम्मुख शत्रु पर प्रहार और उस का नाश अन्यथा स्वयं की अस्मिता – संस्कृति – समाज – कुल – मान सम्मान – सब कुछ मिट जाने का तमाशा देखना होगा ..

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