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राकेश शर्मा जी फेस बुक मित्र हैं..उन्होंने लिखा है कि देवोत्थानी एकादशी पर हम देवताओं को ही जागायेंगे …स्वयं नहीं जागृत होंगे ?
…एक बात यहाँ मैं जोड़ देना चाहता हूँ..
हम सब विशेष पर्व को जान कर देव स्थान पर जाते हैं ..
किन्तु केवल इतने मात्र से हमारे जीवन के जीने के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है .
इस हेतु हमारा चिंतन , हमारे विचार , हमारा कर्म, हमारा रहन सहन, हमारा खान पान , हमारी सामाजिकता , हमारा सम्पूर्ण चराचर जगत से तालमेल कैसा है यह भी महत्वपूर्ण है !
..किन्तु व्यवहारिक रूप से हम देखते हैं , जीवन में ढोंग हम बहुत पाल लेते हैं …
यथा – मेरा आज व्रत है – “”भाव” यह है कि मैं आज भूखा रहूंगा …ये कैसा व्रत है ?? कौन कह रहा है कि व्रत है तो भूखा रहो ???
व्रत का अर्थ है नियम धारण करना तो नियम धारण करने में भूखा ही रहना और शेष समस्त कार्य झूठ बोल कर, चुगली कर , धोखा देकर , लालच मन में रख कर शाम को या अगली सुबह खा लिया ..
हो गया व्रत पूर्ण ??
इस से अच्छा तो नियम में सत्य-प्रेम-करुना – साहचर्य – वसुधैव कुटुम्बकम के भाव का समावेश हो …तो व्रत का महत्व है.
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