राजभाषा कार्यान्यवन तेज़ गति से प्रगति दर्शा रही है। वर्तमान में देश में चारों तरफ विभिन्न भ्रष्टाचार की गूंज है ऐसे में एक सोच यह भी उत्पन्न होती है कि क्या राजभाषा में भी भ्रष्टाचार हो सकता है? इस दिशा में एक आकलन करने का प्रयास किया जा रहा है जो निम्नलिखित है :-
1. राजभाषा (हिन्दी) की तिमाही रिपोर्ट : राजभाषा कार्यान्यवन के प्रगति की प्रतीक राजभाषा की तिमाही प्रगति रिपोर्ट है जिसके अनुसार अधिकांश कार्यालय लक्ष्य से कहीं अधिक राजभाषा की प्रगति दर्शा रहे हैं किन्तु कार्यालयों के निरीक्षण से जो तथ्य स्पष्ट होता है वह दर्शाता है कि हिन्दी की तिमाही प्रगति रिपोर्ट में दर्शाये गए आंकड़ों और कार्यालयों के विभिन्न टेबलों पर पाये जानेवाले राजभाषा के कार्यों के बीच काफी फासला है। यह फासला किसी एक या दो तिमाही रिपोर्टों का नहीं है बल्कि कथनी और करनी का यह फर्क वर्षों से चलते आ रहा है। दूसरे शब्दों में वर्षों से राजभाषा की तिमाही रिपोर्ट में आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाया जा रहा है जिससे कार्यालयों को राजभाषा के विभिन्न पुरस्कार प्राप्त करने में सुविधा हो सके। इस पर किसी प्रकार की रोक लगाने की कोशिश नहीं की गयी है, परिणामस्वरूप कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्यवन का प्रयास करने के बजाए तिमाही रिपोर्ट में अधिक रिपोर्टिंग करने तक ही राजभाषा सिमटती जा रही है। क्या यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार के दायरे में नहीं मानी जाएगी?
2. राजभाषा (हिन्दी)कार्यशाला का आयोजन : प्रत्येक केंद्रीय सरकार के कार्यालय, बैंक और उपक्रम राजभाषा कार्यशाला का आयोजन करते आ रहे हैं। वर्तमान में कार्यशाला की अवधि मात्र एक दिन की रह गयी है अन्यथा एक सप्ताह से तीन दिवसीय फिर दो दिवसीय की यात्रा करते हुये अब यह कार्यशाला एक दिवस तक सिमट गयी है। यूनिकोड विषय को छोडकर कार्यशाला के सभी विषय बीस वर्ष पुराने हैं। यहाँ यह गौर करनेवाली बात है कि मात्र विषय ही पुराने नहीं है बल्कि कार्यशाला सामग्री भी पुरानी है। पुरानी कार्यशाला सामग्री के अतरिक्त अधिकांश राजभाषा अधिकारियों के चर्चा आदि में भी बासीपन को सहजता से पाया जा सकता है। राजभाषा कार्यशाला की ना तो सामग्री में नवीनता है और ना ही राजभाषा अधिकारियों का प्रशिक्षक के रूप में नयी सोच की धार है। ऐसी स्थिति में राजभाषा को नए रूप, नए अंदाज़ और नए प्रभाव के रूप में कैसे और कौन प्रस्तुत करेगा? क्या यहाँ पर दायित्व बोध में लापरवाही प्रतीत नहीं होती है? यदि इसे भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या कहा जाये?
3. राजभाषा कार्यान्यवन समिति की बैठक : किसी भी कार्यालयमें राजभाषा की धड़कन उस कार्यालय के राजभाषा कार्यान्यवन समिति में होती है। इस समिति की बैठक तीन महीने में एक बार आयोजित की जाती है। इस बैठक की कार्यसूची भी अब लगभग एक परंपरा का निर्वाह करते प्रतीत होती है लगभग एक जैसी कार्यसूची का वर्षों से उपयोग करनेवाले कार्यालयों को ढूँढने के लिए विशेष श्रम की आवश्यकता नहीं है। इस समिति की बैठक भी प्रायः अपनी पूरी गंभीरता से नहीं होती है जिसकी जानकारी बैठक के कार्यसूची से मिलती है। समिति की बैठक का आयोजन अनिवारी है इसलिए अनिवार्यता के कारण तो यह बैठक नहीं होती है? यदि राजभाषा के प्रति समर्पित भाव से बैठक आयोजित नहीं की जाती है तो उसका परिणाम भी मंद होता है। इस तरह के मंद परिणामोंवाले कार्यवृत्त वर्षों से लिखे जा रहे हैं। अत्यधिक महत्वपूर्ण समिति के प्रभाव को कम कर कार्य करना राजभाषा का भ्रष्टाचार माना जाना चाहिए। विश्लेषण : राजभाषा का प्रचार-प्रसार तीव्र गति से हो रहा है किन्तु प्रभावशाली ढंग से नहीं हो रहा है। कार्यालयों को चाहिए वे अपने राजभाषा विभाग को समीक्षात्मक और तुलनात्मक दृष्टि से देखें। राजभाषा का उच्चतम पुरस्कार यदि नहीं प्राप्त हो रहा है तो उसकी गहन और व्यापक समीक्षा की जाय। यदि विभिन्न कार्यालयों के राजभाषा विभाग की निगरानी कार्यालय के अन्य विभागों द्वारा की जाएगी तो यह विभाग अपना सर्वोत्तम दे पाएगा अन्यथा उक्त अनियमितताएँ पनपती रहेंगी, अपनी जड़ें जमाती रहेंगी जिससे राजभाषा के भ्रष्टाचार को एक सशक्त आधार मिलता रहेगा।
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