1980 के दशक में हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर विद्यार्थी के लिए हिन्दी अध्यापन, रेडियो, राजभाषा अधिकारी सेवाओं के ही प्रमुख अवसर थे। इन तीन प्रमुख अवसरों में रेडियो में अवसर सीमित था अतएव अधिकांश विद्यार्थी हिन्दी अध्यापन की ओर मुड़ते थे। राजभाषा अधिकारी की सेवा प्राप्त करना अपेक्षाकृत कठिन था क्योंकि इस सेवा के लिए अनुभव की आवश्यकता थी और हिन्दी के अतिरिक्त अँग्रेजी के भी ज्ञान की आवश्यकता थी जिससे अनुवाद कार्य सम्पन्न करने में नियुक्त राजभाषा अधिकारी को कठिनाई ना हो। अनुवादक का पद भी था। इस दशक में राजभाषा अधिकारी के पद को प्राप्त करना एक विशेष उपलब्धि मानी जाती थी। इसके अतिरिक्त राजभाषा अधिकारी का वेतन भी अपेक्षाकृत अधिक था इसलिए अधिकांश हिन्दी सेवी का लक्ष्य राजभाषा अधिकारी का पद प्राप्त करना था। हिन्दी अनुवादक के पद पर कार्यरत अधिकांश अनुवादक राजभाषा अधिकारी बन गए। हिन्दी अध्यापन से जुड़े शिक्षक भी राजभाषा अधिकारी बन गए। इस प्रकार 1980 का दशक राजभाषा अधिकारी सेवा का स्वर्णकाल था। यह सर्वविदित है कि 80 के दशक में राजभाषा अधिकारी के रूप में हिन्दी जगत के श्रेष्ठ व्यक्तित्वों का हुजूम प्राप्त हुआ था जो अब क्रमशः सेवानिवृत्ति हो रहा है और एक अनुमान के अनुसार 2018 तक राजभाषा के लगभग 98 प्रतिशत राजभाषा अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके होंगे। इसलिए नए राजभाषा अधिकारियों के भर्ती का दौर आजकल ज़ोरों पर है ठीक 1980 के आरंभिक दशक की तरह।
1980 के दशक के राजभाषा अधिकारियों में अपनी संस्था के प्रति प्रतिबद्धता थी क्योंकि उस समय हिन्दी के क्षेत्र में गिने-चुने अवसर थे। आजकल हिन्दी के क्षेत्र में अवसरों का अंबार है जिसमें मीडिया क्षेत्र एक प्रमुख आकर्षण है। चूंकि 1980 के दशक के राजभाषा अधिकारियों के सेवानिवृत्ति का सिलसिला आरंभ हो चुका है इसलिए राजभाषा अधिकारी पद की रिक्तियों पर नए राजभाषा अधिकारी की नियुक्ति का दौर चल पड़ा है किन्तु विडम्बना यह है कि अब बहुत कम संख्या में अभ्यर्थी साक्षात्कार समिति को अपनी ओर आकर्षित कर पाते हैं। यह राजभाषा के क्षेत्र में एक नयी चुनौती है, राजभाषा अधिकारी मिल ही नहीं रहे हैं। राजभाषा अधिकारी के रूप में नियुक्त नए राजभाषा अधिकारियों का ध्यान राजभाषा की नयी नौकरियों पर ज्यादा होता है और अवसर मिलते ही त्यागपत्र देकर नए सेवा की ओर लपक जाना अब आम बात हो चुकी है। पिछले 2-3 वर्षों में एक संस्थान से दूसरे संस्थान में उछल-कूद खूब हुयी है। नए राजभाषा अधिकारियों को आकर्षित करने के लिए राजभाषा अधिकारी के आरंभिक पद के बजाए उससे बड़े पद पर नियुक्त किया जा रहा है और इसके बावजूद भी यह कहना कठिन होता है कि यह नए राजभाषा अधिकारी संस्था में कब तक रहेंगे। राष्ट्रीयकृत बैकों में यह चलन ज़ोरों पर है।
राष्ट्रीयकृत बैकों की बात चली तो यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि बैंक में सेवा प्राप्त करने के बाद एक निर्धारित अवधि के बाद विशेषज्ञ अधिकारियों को सामान्य बैंकिंग अधिकारी के रूप में पद परिवर्तन करने की सुविधा है। राजभाषा अधिकारी एक विशेषज्ञ अधिकारी होता है। विशेषज्ञ अधिकारियों की तुलना में सामान्य बैंकिंग अधिकारी को पदोन्नति आदि के अवसर अधिक आसानी से उपलब्ध होते हैं। नए राजभाषा अधिकारी ऊंचे पद आदि की ओर वरिष्ठ राजभाषा अधिकारियों की तुलना में अधिक सचेत और सजग है इसलिए उनकी दृष्टि उस निर्धारित अवधि पर होती है जिसे पूरा करते ही उन्हें सामान्य बैंकिंग अधिकारी का पदनाम प्राप्त हो जाएगा और वे विशेषज्ञ अधिकारी से सामान्य बैंकिंग अधिकारी के रूप में जाने जाएंगे। नए राजभाषा अधिकारी के पास सेवा के अधिक वर्ष हैं और उन्हें लगता है कि यदि वे राजभाषा से जुड़े रहें तो पदोन्नति की केवल कुछ सीढ़ियाँ ही चढ़ पायेंगें और यदि वे सामान्य बैंकिंग अधिकारी बन जाते हैं तो पदोन्नति के सारे रास्ते खुल जाएंगे। वर्तमान परिस्थिति में अपने कैरियर के वर्तमान और भविष्य का विश्लेषण करते हुये नए राजभाषा अधिकारी कार्यरत है। कहीं कोई नौकरी बदल रहा है, कहीं कोई विशेषज्ञता छोड़ संस्था के सामान्य चैनल से जुड़ रहा है आदि। राजभाषा जगत में आजकल यही दौर चल रहा है, एक द्वंद चल रहा है।
वरिष्ठ सेवानिवृत्त हो रहे हैं, नए राजभाषा अधिकारी अपने कैरियर के प्रति अत्यधिक गंभीर, सजग हैं और चपलतापूर्वक कार्य कर निजी प्रगति की राह निर्मित कर रहे हैं परिणामस्वरूप राजभाषा की राह सुनी होती जा रही है। वरिष्ठों को सेवानिवृत्ति से रोका नहीं जा सकता है, नए राजभाषा अधिकारी यदि राजभाषा को छोड़ रहे हैं तो उन्हें टोका नहीं जा सकता तो फिर राजभाषा का क्या होगा? यही स्थिति रही तो अगले 5 वर्षों में राजभाषा के अधिकांश पद रिक्त नज़र आएंगे। राजभाषा जगत की वर्तमान परिस्थितियों को सुधारने के लिए यदि यदि गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो अचानक आई शून्यता को तत्काल भरने का कोई जादुई कमाल भी काम नहीं आएगा। आखिर बात राजभाषा की है, राजभाषा के भविष्य की है इसलिए चिंतन के बजाए प्रभावशाली कार्रवाई की आवश्यकता है। अभी भी समय है बहुत कुछ किया जा सकता है।
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