Menu
blogid : 7938 postid : 39

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर के नाम

राजभाषा /Rajbhasha
राजभाषा /Rajbhasha
  • 29 Posts
  • 27 Comments

14 सितम्बर,1949 में निर्मित राजभाषा का एक रूप ने सम्पूर्ण राष्ट्र को अपनी ओर बखूबी आकर्षित किया। यह नया रूप अपनी चकाचौंध से विशेष तौर पर सरकारी कर्मचारियों को और समान्यतया आम जनता को आकर्षित करता रहा। हिंदी तेरे रूप तो अनेक हैं पर वर्तमान में  सबसे चर्चित रूप है तेरा राजभाषा का रूप। आज तेरा जन्मदिन है और मेरी धड़कनें तुझे वैसे ही बधाई दे रही हैं जैसे एक पुत्र अपनी माँ को बधाई देता है, आर्शीवाद लेता है। आज बहुत खुश होगी तू तो, हो भी क्यों नहीं, साहित्य, मीडिया, फिल्म, मंच से लेकर राजभाषा तक तेरा ही तो साम्राज्य है। अब तो प्रौद्योगिकी से भी तेरा गहरा रिश्ता हो गया है। आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे संसार में तेरे राजभाषा रूप का जन्मदिवस  मनाया जायेगा, मैं भी मानाऊँगा खूब धूम-धाम से। तूने कितनों को मान दिया है, सम्मान दिया है, रोजी दी है, रोटी दी है, एक माँ की तरह तुझसे जो भी जुड़ा तूने बड़े जतन से उसे सहेजा है,संवारा है। मैं भी तो उनमें से एक हूँ। पत्रकारिता, अध्यापन, मंच से लेकर कार्यालय तक तेरे हर रूप को जिया हूँ, सच तुझसे बहुत सीखा हूँ। मेरी हार्दिक बधाई और नमन।


जानती है तू, कि कुछ लोग तेरे जन्मदिवस को लेकर नाराज़ भी होते हैं। ना-ना वो तुझे दुत्कारते नहीं हैं बल्कि वे सब तुझसे बेहद गहरा प्यार करते हैं शायद मुझसे भी ज्यादा क्योंकि वो तुझे ज़रा सा भी कमज़ोर नहीं देख सकते। तेरे राजभाषा के रूप ने ही ऐसी हलचल मचा दी है कि न चाहते हुए भी तुझे चाहने पर लोग मजबूर हो जाते हैं।


आज सैकड़ों विचार तुझ पर चिंतन मनन करेंगे और राजभाषा और राजभाषा अधिकारियों पर अपना दुःख बयां करेंगे। मुझे भी नहीं मालूम कि यह लोग कार्यालय में होनेवाले कार्यक्रमों में तुझे देख सकते हैं अथवा नहीं, यदि देख सकते तो यथार्थ से उनका परिचय भी हो जाता। कितनी चतुराई और श्रम से तुझे राजभाषा के रूप के प्रतिष्ठित करने में कार्यालय के लोग लगे हैं। चतुराई शब्द से लोग कहीं दूसरा अर्थ न लगा लें इसलिए मैं यहॉ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि राजभाषा कार्यान्वयन में कर्मचारी  के भावों,विचारों को दृष्टिगत रखकर राजभाषा में कार्य करने के लिए प्रेरित,प्रोत्साहित करना पड़ता है जिसको मैंने चतुराई शब्द के रूप में प्रस्तुत किया है। तू भी तो बड़ी सीधी है, देश की आज़ादी से पहले कभी सरकारी कामकाज की भाषा बनी ही नहीं और देख न अंग्रेजी कितनी सशक्त हो गयी है सरकारी कामकाज में। तू तो अपनी शुद्धता के दायरे में बंधी रही या बाँधी गयी उधर अंग्रेजी दूसरी भाषाओँ से लपक-लपक कर शब्द लेकर खुद को बड़ा ज्ञानी बना बैठी। बता तू, पहले से सोचती तो आज सरकारी कामकाज मैं तेरी भी बुलंदी रहती और फिर इतने अति संवेदनशील और तेरे राजभाषा के रूप को पूरी तरह से न समझ पानेवाले  दुखी लोग हिंदी दिवस पर अपने दुःख आक्रामकता के संग प्रकट नहीं करते।


तू तो जानती ही है कि प्रत्येक कार्यालय में राजभाषा विभाग होता है और उस विभाग में हिंदी या राजभाषा अधिकारी होता है। राजभाषा या हिंदी विभाग को कार्यालय के सारे विभागों के परिपत्र आदि का अनुवाद करना होता है। तू तो समझ सकती है न कि सरकारी कामकाज की भाषा ना रहने से तेरे पास कार्यालयीन कार्यों की शब्दावली पहले काफी कम थी। राजभाषा विभाग अकेले कैसे सारे विभागों के विषयों पर पकड़ बनाये रख सकता है? विभिन्न विषयों की शब्दावलियों के सहज रूप को ढाले रह सकता है? इसलिए विषय को पूरी तरह समझे बिना भी हिंदी अनुवाद कर देता है जिससे अस्वाभाविक शब्द आ जाते हैं और तू कठिन लगने लगती है। यद्यपि अब स्थितियां बदल रही हैं और कार्यालयीन कामकाज में मूल रूप से तेरा भी प्रयोग होने लगा है पर अब भी कुछ कर्मचारियों को अंग्रेजी बड़े सम्मान की भाषा लगती है, लगने दे! भूमंडलीकरण ही एक दिन सिखला देगी प्रत्येक देश के अपनी भाषा के महत्व को, और हम सब राजभाषा वाले भी तो हैं इस प्रयास में। तुझे तो मालूम है न कि राजभाषा विभाग को कार्यान्वयन भी करना पड़ता है और अनुवाद भी, प्रशिक्षण भी और तुझे सरल बनाने के लिए भी कर्मी राजभाषा विभाग से ही अपेक्षा रखते हैं। ना जाने कब, कैसे और क्यों कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन की सारी जिम्मेदारी केवल राजभाषा विभाग पर ही डाल दी गयी है बाकी विभाग तुझसे बचे रहते है या बचने की कोशिश करते हैं लेकिन कब तक?


आज अपने जन्मदिन पर बता ना क्यों करते हैं ऐसा व्यवहार अन्य विभाग? पर तू ना घबड़ा सब ठीक हो रहा है और ठीक हो जायेगा। अब कार्यालय में तेरे राजभाषा रूप को सब जानने-पहचानने और अपनाने लगे हैं और तुझे आसान करने का दौर शुरू हो गया है। लगभग 5 वर्षों में तेरा राजभाषा रूप अति लोकप्रिय हो जायेगा तथा कर्मचारी तेरे अभ्यस्त हो जाएंगे तब तक शिकवे-शिकायत को सुनती जा। देख मैंने यह वाक्य जो लिखा है ना उसपर कई प्रतिक्रियाएं उठेंगी, शायद लोग समझें की मैं ज्योतिष की बात कहाँ ले आया। पर तुझसे तो मेरी धडकनें जुड़ी हैं और धड़कनों को तर्क की कसौटी पर कैसे कसा जा सकता है? इसलिए अपनी इस बात को मैं अभी प्रमाणित नहीं कर सकता। ठीक कहा न मैंने, मुझे तो विश्वास है। कार्यालयों में जिस तेजी से तुझे स्वप्रेरित होकर अपनाया जा रहा है उससे निकट भविष्य में यह वर्तमान तेरे एक नए और सरल रूप को जन्म देगा। हिंदी दिवस का आयोजन वर्तमान कामकाजी हिंदी की आवश्यकता है और भविष्य का संकेत भी। आती रह ऐसे ही वर्ष दर वर्ष और राजभाषा के रथ को प्रगति पथ पर लिए जा निरंतर। मेरे जैसे लाखों लोग समर्पित भावना से तेरे साथ हैं। हिंदी दिवस राजभाषा का एक नया मंगलमय आरम्भ ले कर आये, आज मैं तुझसे यही आशीष चाह रहा हूँ। मेरा प्रणाम स्वीकार कर।



Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply