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राष्ट्रीय जल नीति – सरकारी दुस्साहस या बेशर्मी

ज़रा हट के............
ज़रा हट के............
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मित्रों, हमारे माननीय प्रधानमत्री पिछले दिनो राष्ट्रीय जल नीति के बारे में चर्चा कर रहे थे| देश का प्रधानमंत्री प्रबुद्ध जनता के बीच अपना लिखा हुआ भाषण पड़ रहा था और सामान्यतः चेहरे पे वो भाव नहीं आ रहे थे कि वह “जीवन के आधार – पानी” के विषय में चर्चा कर रहे हो| भाषण पडने की ओपचारिकता करके हुए माननीय ने चंद बाते की जिनमे से कुछ बेहद संवेदनशील तथा आम जनता को निकट भविष्य में खतरनाक संकट में डालने वाली थी|

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प्रधान मंत्री ने कहा कि जल की बर्बादी इसलिए है कि “जल इस देश में बहुत सस्ता है” और दूसरा कि जल का निजीकरण कर दिया जाना चाहिए|

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में ये उद्बोधन सुनकर के सहम सा गया  कि पानी सस्ता …………!!!!!!!

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सर्वप्रथम तों पानी कोई वस्तु नहीं है जो सस्ती या महंगी हो, दूसरा पानी किसी फेक्ट्री में नहीं बनता जिसका मूल्य निर्धारित हो और तीसरा पानी कुदरत का अमूल्य तोहफा है जिसके बिना जीवन की क्षणिक कल्पना करना भी मुश्किल है| पानी कोइ विलासिता की वस्तु नहीं बल्कि जीवन का आधार है, और प्रत्येक जीव का प्राकृतिक अधिकार है|  ऐसे में पानी की उपलब्धता को सरकारी जिम्मेदारी से जोड़कर देखे तों प्रत्येक नागरिक को पानी उपलब्ध कराना सरकारी जिम्मेदारी है.

वैसे तों दुनिया में पानी ही पानी है परन्तु पानी हर जगह सुलभ नहीं है इसका कारण पानी का दुर्लभ होना नहीं बल्कि पानी का कुप्रबंधन है| पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों का खुले आम सरकारों व माफीयाओ कि मिलीभगत के अनियंत्रत दोहन हो रहा है|  पर्वत, नदियाँ, तालाब, कछार, जंगल खाने-खदाने आदी-आदी संसाधनों को मुट्ठी भर लोगो ने पिछ्ले ३०-४० वर्षों में शोषित कर लगभग खतम सा कर दिए है| इन प्राकृतिक संसाधनों का सत्यानाश कर, माफियाओं की नज़र अब पानी पे है|

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आम आदमी दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रहा है. मेहनत किसान, मजदूर कर रहा है पर माफिया, सरकारी अफसर उस पर धंधा कर रहे है| किसान जिस हालत में सौ साल पहले था आज भी वही पर है, और ये माफिया लोग सरकारी कार्यालयो में बैठ, किसान, मजदूर के भाग्य विधाता बने हुए है| सचमुच बहुत बड़ा दुर्भाग्य है| ये सब लोग तैयारी कर रहे है कि रोटी, कपड़ा और मकान तों हम गरीब की पहंच से दूर कर ही चुके है, अब पानी के लिए भी तरसा दो…… टैक्स लगाकर, बेचकर, पानी का निजीकरण कर गरीब का बचा कुचा खून भी पी जाओ|

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जल का निजीकरण सिर्फ और सिर्फ लाभ के उद्देश्य से ही किया जा सकता है, क्योंकी निजीकरण करते ही कुछ लोग प्राकृतिक संपदा के स्वामी बन जाते है| वो उस चीज के मालिक बन जाते है जो उन्होंने नहीं कमाई| पानी के साथ एक विशेष बात है कि पृथ्वी की सतह में पाया जाने वाला अधिकांश जल, जिस रूप में उपलब्ध है उसी रूप में प्रयोग भी किया जा सकता है यानी, मूलभूत आवशयकताओ के मद्देनज़र पानी “कच्चा माल” नहीं है बल्कि “तैयार” वस्तु है| इसके अतिरिक्त इस सृष्टी में पानी का उपयोग सिर्फ इन्सान ही नहीं करते बल्कि जानवर, पेड पौधे यहाँ तक कि मौसम, हवा आदी प्राकृतिक प्रणालियों को भी पानी चाहिए| ऐसे में जरूरत इस बात की है कि पानी के प्रबंधन दुरुस्त किया जाए और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जाय| इसके लिए नदी, तालाबो, कछार वन आदी प्राकृतिक प्रणालियों का संरक्षण कर खेत व घरों तक आवश्यक पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाय| परन्तु किसी ने दिल्ली के आलीशान कमरे में बैठकर राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा लिखा और सरकार उसमे धंधा करने बैठ गयी| प्रस्तुत नीति में जल प्रबंधन के लिए सामुदायिक सहभागिता, ग्रामीण सहभागिता, प्राकृतिक संरक्षण आदी के लिए कोइ स्थान नहीं है परन्तु निजी क्षेत्र के लिए पूरे दरवाज़े खोल कर धंधा करने की नीव डालने का काम किया गया है| पानी को लेकर निजीकरण का पुरजोर विरोध होना चाहिए|

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ये प्राकृतिक सत्य व अपेक्षित न्याय है कि प्रकृति के अनमोल उपहार व जीवन के आधार व पारिस्थिकीय तंत्र के घटक को आप किसी की जागीर नहीं बना सकते है| परन्तु माफियाओं के हाथो की कठपुतली सरकारे ये दुस्साहस भी करने का प्रयास करेगी| मेरे देश की संपदा को बेदर्दी से लुटाया जा रहा है और देश का दुर्भाग्य ये है कि घर के चिराग घर जलाने पर आमादा है|

हे प्रभु रक्षा कर ……………….|

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