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उड़ जा ओ पाखी..

punarnava
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उड़ जा ओ पाखी, तू उस आसमां को छू जाएगा,
बस उड़ता जा रे पंछी, तू तो जहां को पार कर जाएगा,
थोड़ा खुद पे कर तू भरोसा अपनी मंजिल पर इक दिन पहुंच ही जाएगा,
बस जरूरत है थोड़े से सब्र की, तू तो उड़ कर ही अपने रस्ते खुद बनाएगा,
थक गया है तू अगर तो भले कर ले थोड़ा आराम मगर,
बस याद रख की रुकना नहीं है तुझे क्युकी लक्ष्य अभी है दूर अगर,
तो उड़ जा ओ पाखी, और पा ले अपनी उस नियति को..
रख तो थोड़ा खुद पे और थोड़ा उस खुदा पे भरोसा ज़रा,
अगर किया पैदा है तुझे तो वो उड़ना भी सिखाएगा,
अगर गिरा है तू अगर तो फिर से उठना भी बताएगा,
रहा ना जो घरौंदा तेरा तो तिनकों से उसे बुनना भी आ जाएगा,
बस थोड़ा परों को तो ऊपर उठा तुझे तो वो आसमां भी नीचा नज़र आएगा,
अब तो तू बस उड़ जा ओ पाखी, और लिख अपने मुक्कदर को
माना के है तूफान बहुत, सामने हैं तेरे बवंडर कई,
लेकिन कर तो थोड़ा उन परों पे भरोसा तू, क्युकी उनमें भी है एक जान नई,
धनेरे बादल भी छट जाते हैं, धुंध के चादर भी कट जाते हैं,
भले होते है जीवन में हर किसी के उपपाद्य कई,
माना है रस्ते में तेरे मसले अपार कई,
लेकिन रेत के समंदर भी नप जाते हैं, तपती गर्मी भी तो ढल जाती है,
तो रख तो तू खुद पर भी विश्वास वहीं,
और अब उड़ जा ओ पाखी, और पा ले उस अभिप्राय को
पहुंच जा उस ठिकाने को जो थी सदियों से मंजिल तेरी
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।

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