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आधी अधूरी आजादी…..

samajik kranti
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दिन था वह पन्द्रह अगस्त का, औ’ सैंतालिस सन था।
कहते हैं सब भारत की आजादी का वह दिन था।।
किन्तु वह आजादी मुझको, यहां नजर न आती।
नारी की इज्जत जो दिन में, खुले आम लुट जाती।।
जो कसाव दुश्मन भारत का, उसको है विरयानी।
अनशनकारी रामदेव को, मिला नहीं था पानी।।
आधे से ज्यादा संसद में, अपराधी घुस आये।
यह दुर्भाग्य हमारा देखो, वह कानून बनाये।।
कुछ अपराधी हुये संगठित, औ’ सरकार बनाली।
घपले औ घोटाले वाली, हैं करतूतें काली।।
नागनाथ यह साँपनाथ वह, सबको है अजमाया।
जनता की परवाह नहीं की, अपना हाथ बनाया।।
नशा हुआ है ये सत्ता का, इनको तो कुछ ज्यादा।
सत्ता को पाकर भूले हैं, संसदीय मर्यादा।।
कोई कोयला खा जाता है, कोई चारा खाये।
जनता का दुर्भाग्य देखिये, वह मंत्री बन जाये।।
नहीं योग्यता की कुई कीमत, चले सिफारिस रिश्वत।
आरक्षित होती है सर्विस, नहीं योग्यता कीमत।।
सब कहते हैं इस भारत को, प्यारी भारत माता।
माँ भारत को डायन कहता, वह मंत्री बन जाता।।
अपनी शर्तों पर गोरों ने, भारत को था छोड़ा।
जाने के पहले गोरों ने, भारत को था तोड़ा।।
गोरों के कानून अभी भी, भारत में चलते हैं।
काँग्रेस है देन उन्हीं की, क्यों यकीन करते हैं?
आजादी तो नहीं मिली थी, यह था इक समझौता।
गोरों की शर्तों पर शायद, सत्ता का था सौदा।।
संसद में अब कूच कर रहे, जो थे चोर उचक्के।
राजनीति के जानकार जो, रह गये हक्के बक्के।।
वंशवाद का नेहरू जी ने, पहले चलन चलाया।
अब तो पूरे भारत में ही, वंशवाद है छाया।।
सभी पार्टियाँ आज कम्पनी, जैसी मुझको लगतीं।
जो भी शासन में आ जातीं, वह जनता को ठगतीं।।
क्या कारण की आजादी का, हम यह पर्व मनायें।
आजादी का मुझे एक भी, लक्षण नजर न आये।।
सजा हुई न किसी एक को, कितने हुये घुटाले।
जो सत्ता में आया उसके, हाथ हुये हैं काले।।
उत्तर मुझको मिला न अब तक, हम क्यों इसे मनायें।
मेरे इन प्रश्नों का उत्तर, कोई न बतलाये।।
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