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कश्मीर की दर्द भरी कहानी, कश्मीर की जुबानी…..

samajik kranti
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मेरे प्यारे देशवासियों, कभी मैं  इस धरती का स्वर्ग हुआ करती थी, किन्तु देश का छोटे छोटे प्रान्तों, भाषा में बँटा होना तथा देशवासियों का अनेक जातियों में बँटा होना एवं सहिष्णुता, अहिंसा और अतिथि को देवता समझने की सोच रखने के कारण विदेशी आततायियों के जुल्मों का शिकार बनी। उन्होंने मुझे जीभर के रौंदा, कुचला और मसेला। तुम सब मुझसे कटे रहे तथा खामोश रहे और मेरी बरबादी का तमाशा देखते रहे। मैंने तुम्हें अपनी दर्दनाक कहानी यह सोचकर नहीं बताई कि शायद तुम्हें सब पता होगा। अफसोस है कि तुम्हें सब पता भी था और तुम खामोश रहकर मेरी बरबादी देखते रहे। लेकिन जब आज मैंने वही कहानी असम की देखी तो मुझे अपने साथ हुये जुल्मों की कहानी याद आ गई। यह सोच कर मैं आप सबको अपनी कहानी बता रहीं हूं कि कहीं आपकी खामोशी असम को दूसरा कश्मीर न बना दे। क्या मेरी कहानी जानकर भी असम के प्रति आपका देशभक्त खून नहीं खोलेगा। मैं जानती हूँ कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का छद्म दम्भ भरने वाले नेता मेरी कहानी को साम्प्रदायिक कहकर आप सबको भ्रमित करेंगे तथा आपको जाति, प्रांत, संस्कृति एवं भाषा में बाँटकर चुप करा देंगे। मेरे देश वासियों इन साम्प्रदायिक भ्रष्टाचारियों के झाँसे में नहीं आना, मुझे तो नहीं बचा पाये, लेकिन मेरी बहन असम को जरूर बचाना।

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तिब्बत से रेंचन नाम का चतुर, चालाक एवं शातिर एक राजकुमार कश्मीर आया। उसने अपने गुणों से कश्मीर के शासक को अत्यधिक प्रभावित किया। उसने अपनी पुत्री कोटा रानी का विवाह उसके साथ कर दिया। उसकी साजिशों के कारण राजा थोड़े ही समय में मृत्यु को प्राप्त हुआ। रेंचन कश्मीर का शासक बन गया। जनता उसके कुचक्रों को समझती थी तथा उससे घृणा करती थी। एक दिन रेंचन ने यह कहते हुये फकीर बल्बुलशाह के द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने की घोषणा कर दी कि मैंने कल रात को प्रतिज्ञा की थी कि आज प्रातः जिस धर्म के व्यक्ति का चेहरा सबसे पहले देखूँगा उसी का धर्म स्वीकार कर लूँगा। और आज मैंने फकीर बल्बुलशाह का चेहरा देखा। अतः मैं इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहा हूँ। उसने हिन्दु पर हावी होने के लिये एक मुसलमान को अपना सेनापति नियुक्त कर दिया। वह सेनापति रेंचन से बड़ा साजिश रचने वाला निकला और रेचन भी अपने ससुर की तरह संदेहात्मक स्थिति में शीघ्र ही मुत्यु को प्राप्त हुआ। मुस्लिम सेनापति कश्मीर का शासक बन गया। उस शासक की संतान ने हिन्दुओं पर ऐसे ऐसे भयानक सितम किये कि ऐसे सितम संसार में बहुत ही कम देखने को मिलेगे। इसका नाम सिकन्दर बुत शिकन था। इसके हाथों से कश्मीर में न तो कोई हिन्दु बचा, न कोई बुत और न कोई बुतखाना। इसका आदेश था कि कश्मीर में जो भी ब्राह्म्ण और हिन्दु विद्वान हैं वे सब मुसलमान हो जावें या फिर कश्मीर को छोड़ देवें तथा सोने चाँदी के सारे बुत टकसाल में जमा कर दें। जिन ब्राह्मणों का मुसलमान होना या कश्मीर जैसा स्वर्ग छोड़ना गँवारा नहीं था उन्होंने आत्मघात कर लिया। कुछ कश्मीर छोड़कर अन्य स्थानों में बस गये किन्तु कुछ ने विवश होने के कारण मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया। इसके बाद सिकन्दर बुत शिकन ने बुतों को तोड़ना एवं बुतखानों को मिटाना आरंभ कर दिया। वहाँ एक बहुत बड़ा महादेव का बुतखाना था। सुल्तान ने उसे खोदने का आदेश दिया। पानी निकलने तक खोदने के बाद जब उसका अंत न मिला तो उसने राजा ललता द्वारा जो एक बड़ा मजबूत बुतखाना बनाया था, उसे तोड़ा और सुल्तान बुत शिकन के नाम से मसहूर हुआ।

(तारीख फरीश्ता जिल्द पृष्ठ 447)

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जो हिन्दु मुसलमान न बना उसे तलवार के घाट उतार दिया इस प्रकार थोड़े ही दिनों  में कश्मीर से हिन्दुओं का नामों निशान मिट गया।

(तवारीख फरीश्ता पृष्ठ 448)

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एक सप्ताह भर नामी सैफुद्दीन ने ठान लिया  कि जब तक सब हिनदुओं को मसलमान न करूँगा तब तक दम नहीं लूँगा। सुल्तान ने सबसे पहले मंदिर मार दण्डी शोर जो उस जमाने से साढ़े चार हजार वर्ष पहले राजा रामदेव ने करीवाह पटन पर बनाया था, को गिराना आरंभ कर दिया। यह सिलसिला एक साल तक लगातार चला। इसके बाद उसने इसमें आग लगा दी। इसके बाद जो बच बहारह के तीन सौ से अधिक मंदिर गिरा दिये गये। परसपुरा, बीरहमूला, त्रिरेश्वर, सुरेश्वर के मंदिर गिरा कर वहाँ ेके लोंगो को जबरजस्ती मुसलमान बनाया गया। उनके जुन्नारों ( यज्ञोपवीतों ) अर्थात् जनेऊओं को तोला गया जिसकी तौल सात मन अठ सेर हुई।अंदाज लगाइये कितने लोगों को बलात् मुसलमान बनाया गया होगा। सिंकदर ने 22 वर्ष एक माह 16 दिन शासन किया।

(त्वारीख कश्मीर भाग-2 मुहम्मद दीन फौक पृष्ठ 25 से 29)

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इसके बाद सुल्तान अलीशाह तख्त पर बैठा। वह अपने बाप से भी अधिक हिन्दुओं का दुश्मन था। उसने हिन्दुओं का रहा सहा नाम भी मिटा दिया।

(तवारीख कश्मीर भाग-2 मुहम्मद दीन फौक पृष्ठ 30-31)

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जैनुल्आबदीन ने एक जंजीरा झील में आबाद किया। यह जंजीरा 95 गज लम्बा और 75 गज चौड़ा है, एक दिन जैनुल्आबदीन झील की सैर कर रहा था तो उसने सतदमत नगर के एक मंदिर के आसार (परछाई) पानी की तह में देखी, जो पानी कम होने पर दिखाई देती थी। उसने हुक्म दिया कि इस मकान पर इमारत बनाई जावे। वहाँ पर मिट्टी भरवाकर जंजीरा बनवाया गया, तब मंदिर नजरों से गायब हो गया। तब सुल्तान ने तलाश करने का हुक्म दिया। गोताखोरों ने गोता लगाकर मंदिर को तलाश कर लिया और दो बुत भी निकाल लाये। जब यह जंजीरा तैयार हो गया तो इस पर अलीशान मकान बनवाया।

(तवारीख कश्मीर मुहम्मद दीन फौक, जिल्द-2 पृष्ठ 40-49)

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एक बार जैतुल्यआबद्दीन ऐसा बीमार हुआ कि बचने की कोई आशा नहीं रही। उसको एक योगी ने अच्छा किया, तब से उसने वहाँ हिन्दुओं के रहने की आज्ञा दी और सब पावंदियाँ उसने हटा दीं। कुछ मंदिरों की मरम्मत भी करा दी। तब से कुछ हिन्दु कश्मीर में फिर से आबाद हो गए।

(तवारीख कश्मीर मुहम्मद दीन फौक जिल्द-2 पृष्ठ 44 से 47)

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