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ज्योतिषी जी एवं ओझा जी की पोप लीला (भाग-४)

samajik kranti
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जिसका वर्तमान में आकर रह सकना हो उसे भूत कहते हैं। किन्तु कुछ चतुर एवं कुटिल बुद्धि के लोगों ने पेट के वशीभूत होकर लोगों को भय दिखाकर भूत, प्रेत, शाकिनी, डाकिनी आदि की कल्पना कर ली तथा लोगों को भ्रमित करके इन्हें दुख का कारक बना दिया। अज्ञानी और अशिक्षित लोग जब चिकित्साशास्त्र एवं पदार्थ विज्ञान को पढ़ने सुनने एवं विचार करने में असमर्थ होते हैं तो वे शारीरिक एवं मानसिक रोगों को भूत, प्रतादि की बाधा समझकर समय पर चिकित्सा न कराकर ओझा, जादूगर, डोरा, ताबीज बाँधने वालों, तंत्रमंत्र , झाड़-फूँक करने वालों आदि के चक्कर में पड़कर अपनी बीमारी को असाद्ध बना देते हैं। इस प्रकार अपने जीवन एवं धन को नष्ट करते हैं।
अपनी किसी भी विपदा में उन ढ़ोगी एवं पाखंडी लोंगो के पास जाकर कहते हैं “स्वामी जी, महाराज जी, गुरू जी, तांत्रिक जी, ओझा जी मेरा अमुक बालक, बालिका, स्त्री या पुरुष को न जाने क्या हो गया है?”
वे कहते हैं- “इसके शरीर में अमुक भूत, आत्मा, प्रेत, डाकिनी, चुडैल, भैरवी आदी प्रवेश कर गई है। तुम्हारी या रोगी की अमुक भूल के कारण ऐसा हुआ है। इससे मुक्त होने के लिये अमुक पूजा, पाठ, उपाय आदि करना होगा। यदि शीघ्र उपाय नहीं हुआ तो ये प्राण भी ले सकती है।”
वे इस तरह के उसे अधिक डरा देते हैं। तब वे डर, अज्ञानता और मोह के कारण कहते हैं- “स्वामी जी अब तो आप ही हमारे रक्षक हैं। जितना भी खर्च हो कीजिये, लेकिन इसे बचाइये।”
[ये ओझा जी अपने कई एजेन्टों को खाने पिलाने का लालच देकर छोड़ रखते हैं। जो जगह जगह ओझा जी को सिद्ध होने की अफवाह फैला रखते हैं। लोगों को झूठी कहानियाँ बताते हैं। “मेरे रिश्तेदार को कोई बड़ी बीमारी थी, बड़े बड़े डॉक्टरों का इलाज कराया, लाखों रुपया खर्च किया, बीमारी ठीक होना तो दूर, और बिगड़ती गई, डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि यह ज्यादा दिनों तक नहीं जियेंगे। औझा जी के पास आये, इन्होंने एक मंत्र और ताबीज दे दी, आज हट्टे कट्टे और निरोग होकर जी रहे हैं” आदि आदि।]
ओझा जी की तो लाटरी निकल पड़ती है। अच्छा इन्हें शांत करना होगा। इतनी साम्रगी लाइये। दक्षिणा, देवता को भेंट तथा ग्रहदान भी कराओ। फिर उनके शिष्य झांझ, मृदंग तथा थाली लेकर बजाने लगते हैं। उनमें से कोई एक शिष्य नशे में उन्मत्त होकर चिल्लाने लगता है- “मैं इसके प्राण लेकर जाऊँगा।”
ढ़ोगी कहता है- “नहीं, मैं तुझे इसके प्राण नहीं ले जाने दूँगा।”
शिष्य-  “ठीक है, तुम मुझे पाँच बोतल दारू, पाँच मुर्गा, पाँच बकरा, सवा मन मिठाई एवं कपड़े दे दो, मैं इसे छोड़कर चला जाऊँगा।”
ढ़ोगी- “ठीक है, तुम्हें यह सब मिल जायेगा, लेकिन वचन दो फिर इसे नहीं सताओगे।”
शिष्य- “पहले सामान दो फिर वचन दूँगा।”
ढ़ोगी- “ठीक है। (पीड़ित से) इतने सामान का जल्दी इंतजाम करो।”
पीड़ित- महाराज जी, इतनी जल्दी तो इंतजाम नहीं हो सकता।
ढ़ोगी- फिर एक काम करो, यह सामान लगभग पाँच हजार का आयगा। रुपये दे दो, मैं सामान मँगाकर पूजन करा दूँगा।
पीड़ित- ठीक है महाराज, लीजिये पाँच हजार रुपये।
इस तरह वह चंडाल मंडली उन्हें लूटती है।
यदि पीड़ित परिवार किसी ज्योतिर्विद्याभास के पास जाकर अपनी व्यथा बताता है तो वे कहते हैं- इस पर सूर्य, मंगल और शनि जैसे क्रूर ग्रहों का प्रकोप है। इसके लिये तुम्हें शांतिपाठ तथा दान, पूजा आदि करवाना होगा। यदि इन ग्रहों को शीघ्र शांत नहीं किया गया तो यह मर भी सकता है।
यदि ज्योतिषाचार्य से कहा जाय- महाराज जैसे पृथ्वी जड़ है वैसे ही सूर्यादि भी जड़ हैं, वो प्रकाश और ताप आदि से अलग कुछ नहीं कर सकते। जब इनमें चेतना नहीं होती तो क्रोधित होके दुख और शांत होके सुख कैसे देते होंगे।
इसके जवाब में वे कहते हैं कि- संसार में जो भी सुख एवं दुख है, वह इन्हीं ग्रहों के कारण है। युद्ध और मँहगाई आदि का कारण भी यह ही हैं।
महाराज मनुष्य के सुख और दुख का कारण उनके कार्य एवं परिस्थितियाँ होतीं हैं। उन परिस्थितियों के निर्णय में उसका हाथ होता है। युद्ध और मँहगाई आदि की समस्यायें सरकार की नीति से निर्धारित होती है। बेचारे ग्रहों पर क्यों दोषारोपण कर रहे हो।
यजमान तुम्हें ज्योतिष का ज्ञान नहीं है। फिर तुम इसे झूठा कैसे कह सकते हो।
महाराज जी, ज्योतिष का अंक, बीज और रेखा गणित एक अच्छी विद्या है। लेकिन फल की जो भी लीला है वह झूठी एवं कल्पित है।
यजमान तुम्हें जन्म पत्र का ज्ञान नहीं है। उसका फल निष्फल नहीं होता।
गुरुजी, यदि जन्मपत्र का नाम शोकपत्र होता तो ठीक होता। क्योंकि संतान के जन्म से जो आन्नद से जो आनन्द होता है, जन्म पत्र रूपी शोकपत्र बनने से वह शोक में बदल जाता है।
गूरुजी- तुम्हारा यह आरोप मिथ्या है।
यजमान- संतान के जन्म के बाद पोप जी माता पिता को जन्म पत्र बनवाने की सलाह देते हैं।
माता पिता पुरोहित जी को दक्षिणा देकर कहते है कि अच्छा जन्म पत्र बनाइये।
पोप जी अपनी लीला से धनवान संतान का बहुत सी लाल पीली रेखाओं से चित्र विचित्र और निर्धन हो तो साधारण रीति से जन्म पत्र बनाता है।
धनवान पोप जी से पूछते हैं- इसका जन्म पत्र अच्छा तो है ?
पोप जी कहते हैं- जैसा भी है सुना देता हूँ। जन्म ग्रह अच्छा है, मित्र ग्रह भी बहुत अच्छे हैं। यह धनवान और यशवान बनेगा। जिस सभा में बैठेगा हीरे की मानिन्द चमकेगा। निरोगी काया होगी। राजयोग की भी संभवना है।
वाह ज्योतिषी जी वाह… आपने तो दिल खुश कर दिया।
ज्योतिषी जी तवा गर्म देखकर अपना पाँसा भेंकते हैं, सारे ग्रह तो अच्छे एवं लाभप्रद हैं, किन्तु यह एक फँला ग्रह बहुत क्रूर है।
इस ग्रह के योग से 8 वर्ष में इसकी मृत्यु का योग है।
यह सुनकर माता पिता का आनन्द शोक में बदल जाता है।
ज्योतिष जी यह आप क्या कह रहे हैं?
जजमान हम तो वही कह रहे हैं, जो जन्मपत्री में लिखा है।
महाराज जी हम क्या करें?
उपाय करो।
क्या उपया करें?
ऐसा ऐसा दान करो, नित पोपों को भोजन कराओ। अनुमानतः संकट दूर हो जायगा।
अनुमान शब्द इसलिये कि यदि मर गया तो कहेंगे कि परमेश्वर के लिखे पर कोई तथा किसी का वश नहीं। हमने तो पूरी कोशिश की। तुमने भी पूरी कोशिश कराई। किन्तु उसके पूर्व जन्म के कार्य ही ऐसे थे। इतनी ही लिखाकर लाया था।
और यदि बच गया तो कहते हैं- देखा हमारे मंत्र देवता एवं हम पोपों में कैसी शक्ति है। तुम्हारे बच्चों को बचा लिया।
किन्तु यहाँ यह बात होनी चाहिये कि जो इनके जप पाठ से कुछ न हो तो दूना तिगुना वसूलना चाहिये। यदि बच जाय तो भी ले लेना चाहिये। क्योंकि जैसा कि पोप शास्त्र में कहा गया है कि व्यक्ति के कर्म और परमेश्वर के नियम तोड़ने का सामर्थ किसी में नहीं। वह तो अपने कर्म और परमेश्वर के नियम से बचा है, तुम्हारे करने से नहीं। यदि गुरु आदि भी दान पुण्य कराके आपको ठगने की कोशिश करते हैं तो उन्हें भी वही जवाब देना चाहिये, जो पोप जी को दिया था।
कोई किसी देवता या देवी के नाम से, कोई पीर साहब के नाम से कोई ईसु की प्रार्थना के नाम से मंत्र, यंत्र, ताबीज, धागा आदि बाँधकर समस्या हरने की बात करता है। इनसे कहो देश में कितनी समस्यायें हैं, सभी पोप संगठित होकर अपनी अपनी युक्तियों से उनका हल कर दें। सारे पोपों (सभी सम्प्रदाय के) की घिग्घी बँध जाती है।
क्या यह पोप मृत्यु, परमेश्वर के नियम और कर्मफल से भी बच सकते हैं? पोप जी के उपायों के बाद भी कितने ही लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं। क्या पोप जी के घर में कभी कोई बच्चा नहीं मरता? क्या यह इन उपायों से अपने आपको नहीं बचा सकते? तब पोप जी महाराज समझ जाते हैं कि यहाँ हमारी दाल नहीं गलने वाली।
हमें इस मिथ्या व्यवहार एवं व्यापार करने वालों का प्रतिकार करना चाहिये और रसायन, मारण, मोहन, उच्चारण, वशीकरण आदि कार्यों को महापामर समझना चाहिये।
अपनी संतानों को बाल्यावस्था में ही किसी भी भ्रमजाल में न फँसने का उपदेश देना चाहिये।

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पुत्र जना सेठानी जी ने, सेठ फूल कुप्पा हो जाय।
जन्म पत्रिका बनवाने को, लिया ज्योतिषी को बुलवाय।
अपनी विद्या से पंडित जी, इसका भाग्य देंय बतलाय।
रेखायें खींची पंडित ने, आड़ी तिरछी औ रंगीन।
भाग्यवान तेरा बेटा है, इसकी राशि पड़ती मीन।।
राजाओं सा भाग्य है दिखता, यह तेरा बेटा तो सेठ।
इसमें कुई संदेह नहीं है, राजनीति में होगी पैठ।।
रिद्धि सिद्धि हो इसकी दासी, बैठा देखो यहाँ कुबेर।
ऐसा भाग्य न देखा मैंने, बैठेगा दौलत के ढेर।।
सेठ खुशी से झूम उठा था, किस्मत जो पाई संतान।
वाह पोप जी क्या है कहने, आप हैं वाकई बहुत महान।।
ज्योतिष जी ने देख लिया जब, नहीं गलेगी ऐसे दाल।
ज्योतिष जी ने सोच समझ कर, अपना सुर बदला तत्काल।।
बोले चिन्ता एक सेठ जी, बैठा यहाँ शनि है क्रूर।
तेरे सुत की इसको खुशियाँ, नहीं तनिक भी हैं मंजूर।।
आठ वर्ष में कोई भयानक, इसको तो घेरेगा रोग।
जन्म पत्रिका में दिखता है, इसी वर्ष में मृत्यु योग।।
सुनकर वाणी पंडित जी की, हुये सेठ जी बहुत अधीर।
अंधकार में चला दिया था, ठीक निशाने बैठा तीर।।
पेडित जी उपाय बतलाओ, चाहे जितनी दौलत खर्च।
पुत्र बिना फिर जीवन कैसा, यह सारी दौलत है व्यर्थ।।
है उपाय पर खर्च बहुत है, और साथ में कठिन विधान।
यह उपाय यदि किये गये तो, विध्न हटेंगे यह अनुमान।।
चाहे जिनता पैसा ले लो, दूर करो सारे व्यधान।
बचा लिया गर मेरा बेटा, करूँ आपका मैं गुणगान।।
पूजा का सामान लिख दिया, जिसकी कीमत बीस हजार।
बीस हजार रुपये हैं पूरे, पेडित जी कीजै स्वीकार।।
यह अनुमान शब्द जो जोड़ा, खुद बचने का किया उपाय।
कह देंगे अनुमान कहा था, अगर मृत्यु उसको आ जाय।।
नहीं मरा यदि आठ वर्ष तक, चारों ओर देंय फैलाय।
मैंने अपने मंत्र, देव से, सेठ पुत्र को दिया बचाय।।
जगह जगह पर उनके चेले, फैलायेंगे यह संदेश।
शंकायें जन्मी मस्तिक में, पूँछ रहा नादान दिनेश।।
लिखी अगर ईश्वर ने मृत्यु, मंत्रों ने कैसी दी टाल।
ईश्वर तो फिर बना है झूठा, मन में प्रश्न उठा तत्काल।।
मंत्र से  यदि मौत न आये, मरे न कुइ ज्योतिष परिवार।
छोड़ा, बाँधा जब मन आया, शनि बँधे क्या इनके द्वार??
इतने अधिक दूर गृह बैठे, करें धरा पर क्यों उत्पात?
कैसे लोग यकीं कर लेते, मैं न समझूँ इनकी बात।।

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