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कलयुगी गुरुगीता

samajik kranti
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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुरेव पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

गुरुमाहात्म तो सच्चा है, लेकिन तथाकथित गुरुलीला झूठी। यह समझना जरूरी है कि गुरु कौन होता है? सच्चे गुरु तो माता, पिता, आचार्य और अतिथि होते हैं। उनकी सेवा करनी और उसने  ज्ञान लेना देना शुष्य गुरु का काम है। किन्तु विद्वानों का कहना है कि जो गुरु लोभी, क्रोधी,  मोही और कामी है उसको सर्वदा छोड़ देना, शिक्षा करनी, सहज शिक्षा से न माने तो अघर्य, पाद्य अर्थात् ताड़ना दण्ड प्राण हरण तक भी करने में कुछ भी दोष नहीं।

आसाराम की किताब ‘श्री गुरुगीता’ में लिखा है..—— ‘गुरु को अपनी पत्नी भी सौंप देना चाहिए’………….

जो विद्यादि सद्गुणों में गुरुत्व नहीं है, झूठ-मूठ कण्ठी तिलक वेद-विरुद्ध मन्त्रोंपदेश करने वाले हैं वे गुरु ही नहीं किन्तु उस गड़रिये जैसे हैं जो अपनी भेड़ बकरियों से दूध आदि का प्रयोजन सिद्ध करते हैं। वैसे ही गुरु रुपी गड़रिया चेला चेली रूपी भेड़ बकिरयों की धन सम्पदा रूपी दूध दुहते हैं।

कहा भी गया है कि-

गुरु लोभी शिष लालची, दोनों खेलें दाव।

भवसागर में डूबते, बैठ के पत्थर नाव।।

भेड़ बकरियों का दुहें, दूध गड़रिया रोज।

नये शिष्यों की इसलिये, गुरु करते हैं खोज।।

सच्चे गुरु माता-पिता, अतिथि और आचार्य।

लें दें इनसे ज्ञान को, करिये सेवा कार्य।।

क्रोधी, मोही, लालची, काम से जो बीमार।

स्वप्न में भी ऐसा गुरु, करें नहीं स्वीकार।।

झूठ-मूठ कण्ठी तिलक, गुरु के गुण न एक।

दूर रहें उस गुरु से, जिसके नहीं विवेक।।

गुरु आज के सिखाते, जाने कैसा पाठ?

उल्टी शिक्षा दे रहे, सोला दूनी आठ।।

गुरुगीता रचकर कई, देते हैं उपदेश।

कामुक होते ये सभी, धरते गुरु का वेश।।

गुरु को सब अर्पित करो, पत्नि घर परिवार।

धनी शिष्य निर्धन बने, बढ़े गुरु व्यापार।।

चर्चा में अति इस समय, ढ़ोगी आसाराम।

नाम के आगे संत है, मुजरिम जैसे काम।।

गुरु बनाने पूर्व में, सब कुछ लीजे जान।

वैसै की गुरु कीजिये, पीते पानी छान।।

गुरु सोचे कुछ शिष्य दे, गुरु चेला से आस।

स्वार्थ और छल, झूठ से, दोनों का हो नाश।।

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