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कविता कल्पित है मगर सत्य के आसपास है। झूठे, बेईमान, ठग आदि, बाबा का
चोला पहनकर, तथाकथित पोप बनकर अपनी ज्योतिषी की दुकान चलाते है। तथा
गुण्डे और डकैत नेता बनकर देश को लूटते रहते हैं। और हम इन विषयों पर केवल
कवितायें लिखकर, लोगों की वाहवाही बटोरकर खुश होते रहते हैं। क्या अब समय नहीं
आ गया है कि हम समान विचारधारा के लोगों को संगठित होकर कोई ठोस कदम
उठाना चाहिये। please please कुछ सोचिये….
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जो घटना सुनाता हूँ, पुरानी नहीं है।
मेरी कल्पना पर कहानी(झूठी) नहीं है।
एक तार बाबू और डाक अधिकारी ने,
मिलकर किया कोई घोटाला।
किसी मीडिया कर्मी की सजगता के कारण,
सरकार ने उन्हें नौकरी से निकाला।
अखबार में उनका निकल गया नाम।
अपने गाँव में भी वे हो गये बहुत बदनाम।
उनके परिवार वालों ने भी उन्हें बहुत धिक्करारा।
जब उन्हें नहीं मिला किसी का सहारा।
तो उन लोगों को निराशा ने जकड़ लिया।
घर गाँव शहर छोड़कर उन्होंने,
जंगल का रास्ता पकड़ लिया।
चलते चलते निकल आये वे बहुत दूर।
रुके तभी जब थककर हो गये चूर।
देखा तो जंगल था बहुत घनघोर।
दो साधू आश्रम बनाकर रह रहे थे उन्हीं की तरह दो चोर।
उन्होंने एक दूसरे को अपनी आप बीती सुनाई।
मिल गये शायद चोर चोर मौसेरे भाई।
उन्होंने मिलकर बनाया एक प्लान।
लोगों को ठगने के लिये खोल ली बाबागिरि की दुकान।
दो तार मशीनों का किया इंतजाम।(संदेश भेजने वाली मशीन)
बाँट लिये चारों ने अपने अपने काम।
तीन बन गये चेले, एक बन गया गुरु।
और उन्होंने अपनी दुकान कर दी शुरु।
दो बैठ गये आश्रम के बाहर और दो अंदर।
और गुरु जी को बताने लगे कि यह है ईश्वर।
बाहर बैठे ढ़ोगी,
लोगों का नाम, पता, समस्यायें पूछकर पर्ची बनाते।
सारा लेखा जोखा, तार के द्वारा अंदर भिजवाते।
जब वह अंदर पहुँचते, तो गुरु उन्हें उनके नाम से बुलाते।
तो पीड़ित व्यक्ति चौंक जाता।
और समझता कि यह गुरु तो हैं बहुत बड़े ज्ञाता।
एक शरारती ने अपना नाम और पता गलत लिखवाया।
जब वह अंदर गया तो गुरु जी ने उसे ज्यों का त्यों दुहराया।
वह चुपचाप बाहर निकला।
और उसने पुलिस तथा मीडिया को कर दी इतला।
वही हुआ जो होना चाहिये था उनका अंजाम।
सुनते हैं अब जेल में प्रवचन देते हैं बाबा जी सुबह शाम।
और चर्चा है कि २०१४ का चुनाव लड़ेगे।
अब तक जनता को ठगा, अब देश को ठगेंगे।
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