samajik kranti
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राह जब भूला युवक हो, कौन फिर लंका जलाये?
मस्त तुम रंगरेलियों में, क्राँति को फिर कौन लाये?
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जिनके हाथों को खलौने, चाहिये थी पुस्तकें भी,
देखिये बचपन यहाँ पर, घूमता कूड़ा उठाये।
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कैंसर के रोग की भी, कोई न पाता दवा है,
डॉक्टर आयें हजारों, गर उन्हें ये छीक आये।
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लूटना था काम जिसका, केश जिस पर सैंकड़ों हैं,
ये नहीं आता समझ में, किस तरह वह जीत जाये?
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नींद में सोया जो गहरी, कोई भी उसको जगा दे,
जागता है जो बताओं,कौन ये उसको जगाये?
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त्यागना होगा सुखों को, कामना बलिदान की लें,
खोलकर सीना सड़क पर, आओगे तब क्राँति आये।
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