samajik kranti
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सोई थी जनता जगाया,
बृद्ध इक इंसान ने।
देश के तुम हो लुटेरे,
अब गया हूँ जान मैं।।
जूँ नहीं रैंगे तुम्हारे,
क्या अभी तक कान में।।
खिड़कियों से देख लो,
नेताओ थोड़ा झांककर।
आ गई जनता बगावत
के लिये मैदान में।।
तुम अगर चेते न अब,
जनता की तुमने न सुनी।
भीड़ जायेगी बदल यह,
एक दिन तूफान में।।
न सियासत यह रहेगी ,
न रहेगीं कुर्सियां।
जूँ नहीं रैंगे तुम्हारे,
क्या अभी तक कान में।।
राज्य का सूरज नहीं था,
डूबता जिनका कभी।
गोरों की सत्ता गई थी,
तुम हो किस अभिमान में।।
तुम समझते टीम यह,
सिमटी हुई कुछ लोगों तक।
भीड़ है कितनी अधिक,
अन्ना के इक आवाह्न में।।
तुम समझते हो मजा,
सत्ता में है सबसे अधिक।
हम मानते हैं देशभक्ति ,
देश पर कुर्बान मैं।।
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