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माँ……कहीं तू ईश्वर तो नहीं है?

samajik kranti
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माँ तेरे चरणों का पानी, मुझको लगता है गंगाजल।
भूमंडल जैसा लगता है, मुझको अपनी माँ का आँचल।
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जब भी कोई समस्या आई, माँ मेरे प्रश्नों का है हल।
माँ की छाती का अमृत पी, मैंने पाया जीवन चंचल।
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अहसानों को कैसे भूलूँ, माँ ने धोया है मेरा मल।
माँ की ममता आसमान है, माँ की गोदी बनी धरातल।
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गिरजाघर, मंदिर औ मस्जिद, माँ के चरणों में जाते मिल।
पौधे को यदि माँ जल देती, महके जैसे कोई संदल।
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जितनी खुश्बू है दुनियाँ में, वह निकली है माँ के आँचल।
माँ ही बरगद की छाया है, माँ ही लगती है तुलसी दल।
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माँ रामायण, माँ ही गीता, माँ कुरान है माँ ही बाइबिल।
माँ के चरणों में मिल जाये, सभी तीरथों का मुझकों फल।
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मुझको माँ लगती है भगवन,
माँ की लोरी लगती सरगम।
यह जीवन मेरी माँ की कृति,
माँ ही है जो चलती धड़कन।।
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हमें बचाये बुरी नजर से,
लोरी से वह हमें सुलाती।
खुद गीले में है माँ सोती,
पर सूखे में हमें सुलाती।।
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माँ से जो ईश्वर की तुलना,
तो ईश्वर भी लगता छोटा।
माँ की थपकी, माँ की लोरी,
चुप करवाते, जब मैं रोता।।
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माँ के हाथों की जो रोटी,
लगता है प्रसाद कोई मंदिर।
माँ की उपमा केवल माँ से,
माँ सूरत भगवान से बढ़कर।।
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मदर डे पर सभी माताओं बहिनों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

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