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मैंने भी एक बेवफा से प्यार किया था (सच्चा प्यार करने से पहिले इसे जरूर पढ़े)

samajik kranti
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मेरी मुहब्बत पर यकीं नहीं था तो इंतहां लिया मेरा,
इंतिहां में जान ले ली, पर यकीं न हुआ।

इश्क ने मुझे इस  कदर दिवाना कर दिया,
गैरों से अपने घर का पता पूँछते हैं।
कत्ल कर दिया उसने सरे आम जाने क्यों?
मरने के बाद हम उससे अपनी खता पूछते हैं।

मेरे दिल  पर चोट की थी जो उसने,
वो बसी थी दिल में उसे दर्द  हुआ  होगा।

मैंने महबूब से कहा मेरा दिल आइना है,
आजमा के देखती हूं, पत्थर मार कर बोली।

वो गये पानी के नजदीक, काँपने लगा पानी,
जला के आये कितनों को, कहीं मुझे न जला दे।
वो किसी काम का न रहा होगा दुनियाँ में,

जिसने दिल  लगाके सच्ची मुहब्बत  की होगी।

भला चंगा था, बीमार सुनकर वो देखने आये,
जाने लगे तो बाकई बीमार हो गया।

उनके आने की खुशी से आँख  में आँसू भर आये,
इसे बदकुस्मती ही समझे कि हम उन्हें देख  न पाये।

तेरी बेवफाई ने हमें पहले ही मार डाला था,
मौत आयेगी तो खाली हाथ  ही जायेगी।

तेरे प्यार में इस कदर खोया था मैं,
तेरी बेवफाई का पता, मरने के बाद चला।

तेरे चाहने वाले की वहाँ लाश पड़ी है,
तुम कहते थे, प्यार में कोई यूँ नहीं मरता।

शराब में वो नशा कहाँ, जो इश्के मुहब्बत में है,
जिस जिसने पी है, उन्हें होश  में नहीं देखा।

जवानी की नेवत क्यों दी खुदा ने तुझको?
मेरे लिये बददुआ निकली, मैं तुझपे मर मिटा।

ओंठो की हँसी नहीं, झांककर अंदर तो देखो,
जल रह है मेरा दिल गमें, समुन्दर तो देखो,
निगाहों से किया मेरा दिल लहुलुहान,
नजर नहीं आता उसका खूने खंजर तो देखो।

मैं कहता हूँ मुझे प्यार आता है तुमपर,
वो कहते हैं मुझे तुमपर तरस आता है।

बेदर्द से दर्द  की दवा माँगी थी,
दवा दी मगर दर्द  बढ़ाने वाली।

तुझसे भली मुझे सिगरिट लगती है,
दिल जलाती है, मगर ओठों को चूमकर मेरे।

आज कब्र में सो रहें हैं बड़े चैन से,
कल कहते थे तेरी याद आती है नींद नहीं आती।

जलना मुझे दिल निकाल कर मेरा,
क्योंकि यह मेरे महबूब का घर हुआ करता है।

उसकी सहेली मौत, मेरे पास आकर बोली,
वो तो किसी और की बन गई, तुम मेरे साथ चलो।

वादा किया था रात में आने का उसने,
वादा तोड़ने के लिये पैर मे मेंहदी लगाई है।

न आँधी, न तूफान, न लहरों का कसूर है कोई,
जिसने डुबोई है मेरी नाव, वो मेरा साहिल था।
अपनी खुशियों की वसीयत की मैंने उसीके नाम,
आज मालुम हुआ वही मेरा कातिल था।।

यकीं किया हजार बार, हर बार धोका खाया,
मजबूर ही तुझपर से यकीं जाता नहीं।

हुश्न को इश्क का कातिल ठहराता हूँ,
मगर फिर भी उन्हें सजा देने का इरादा नहीं रखता।

किसी ओर धुन में कह गये, मिलेंगे फिर,
मैंने पूँछा कब कहाँ, बोले रात ख्वाबों में।

वो अपने आँचल की हवा देते रहे,
मैंने भी होश में न आने का नाटक खूब किया।

वो मेरी आँखों की नींद ले गये क्यों?
नहीं तो ख्वाबों में मुलाकात हो ही जाती।

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