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जल की कमी के कारण भले ही गंगा नदी सिमट रही हो लेकिन यहां का कछार जैविक गतिविधियों से गुलजार है। यहां ऊदविलाव का परिवार पल-बढ़ रहा है तो गंगेटिक डॉल्पफन और देसी-विदेशी पक्षियों की जलक्रीड़ा देखने लायक है। ये जलीय खाद्य श्रृंखला की मजबूत कड़ी हैंं। गंगा नदी में इसकी उपस्थिति से पर्यावरणविद् खासे उत्साहित हैं। उनकी मौजूदगी से पुष्ट हुआ है कि बिहार में सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी का इको सिस्टम दुरुस्त है। एशियन वाटर बर्ड्स सेंसस कार्यक्रम के अलावा अन्य कई सर्वेक्षणों में पाया गया है कि गंगा नदी भागलपुर शहर से तीन किलोमीटर उत्तर खिसक गई है।
सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच जल की कमी हो गई है और जगह-जगह रेत के टीले उभर आए हैं। ये रेत के टीले जैविक गतििवििधियों के केंद्र बने हुए हैं। पर्यावरणविद का कहना है कि गंगा नदी में गाद की समस्या अभिशाप नहीं वरदान भी है। अगर गाद नहीं होगी तो जैवविविधता भी नहीं होगी। भागलपुर में गाद और रेत से बने टापुओं पर कई तरह के पक्षी और जलीय जीव रहते हैं।
मछलियाँ जब धारा के विपरीत चलती हैं तो जरूरत पडऩे पर इन टापुओं के पीछे आकर रुकती हैं और यहाँ जमा सड़े जैविक पदार्थों को खाती हैं। गाद अपने साथ पोषक तत्वों को भी एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। रेत पानी को सोखकर सुरक्षित रखता है। कंकड़ पानी के प्रवाह में हलचल पैदा कर उसमें ऑक्सीजन घोलते हैं। अत: मछलियों के अंडे देने के लिये उपयुक्त जगह बनाते हैं। गांगेय डाल्पिफन, पक्षियों और उदविलाव को भी यहां पर्याप्त भोजन मिल रहा है।
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