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मनुष्य के अस्तित्व के लिए पक्षियों का चहकना जरूरी है। पेड़ों के कटने एवंं ताल तलैया की कम होती संख्या से पक्षियों के घर छिन रहे हैं। अपेक्षाकृत कोसी और सीमांचल में न तो वेटलैंड्स की कमी है और न ही पेड़ पौधों की। जरूरत है तो पक्षियों को संरक्षण प्रदान करने की। हम पक्षियों को आसरा देंगे, तभी तो हम उनकी चहचहाहट अपने आंगन, अपने क्षेत्र में सुन पाएंगे। हाल ही में हमने एक फिल्म देखी जो पक्षियों को केंद्र में रखकर बनाई गई है। फिल्म में बताया गया है कि किस तरह मोबाइल टावर और उसके रेडिएशन से पक्षियों की मौत हो रही है। फिल्म में एक पक्षी राजा है जो पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करते हैं और वे मोबाइल टावर के कारण पक्षियों की हो रही मौत से लोगों को जागरूक करते हैं। पूरा सिस्टम उनकी बात को अनसुनी कर देता है और वे निराश होकर विध्वंसक हो जाते हैं। वे नकारात्मक शक्ति को एकत्र कर पूरे शहर से मोबाइल गायब कर देते हैं और एक-एक कर पक्षियों के मौत के लिए जिम्मेवार लोगों को मौत की नींद सुला देते हैं। — फिर उनका भी अंत होता है। फिल्म को रोचक बनाया गया है और समाज को सुंदर मैसेज देने का प्रयास किया गया है।
भागलपुर शहर में भी एक पक्षी राजा है, जो नकारात्क नहीं सकारात्मक तरीके से पक्षी संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। नाम है- अरविंद मिश्रा। वे बिहार के जाने-माने पक्षीविद् हैं। बचपन से जंगल घूमने और प्रकृति से जुड़ी चीजों के अध्ययन के शौक ने उन्हें आज परिंदों का प्रहरी बना दिया है। कटिहार का गोगाबील या जमुई का नागा- नकटी पक्षी विहार हो या फिर कोसी-गंगा दियारा का कोल-ढाब, वे कहीं भी गले में कैमरा और दूरबीन लटकाए पक्षियों को निहारते मिल जाएंगे।
2003 से राज्य वन्य प्राणी पर्षद के सदस्य के रूप में सेवा देने वाले अरविंद मिश्रा बताते हैं कि वर्ष 1990 में अपने दोस्तों को साथ लेकर मंदार नेचर क्लब की स्थापना की और पक्षियों की पहचान शुरू की। जब उन्होंने कहा कि बिहार-झारखंड में प्रवासी पक्षी आते हैं तो लोगों ने उन्हें पागल से ज्यादा कुछ नहीं समझा। उन्होंने पुस्तक के आधार पर अपनी बात को स्थापित की तो लोग उनके साथ जुड़ने लगे। बाद में बिहार की सभी पक्षी आश्रयनियों का अध्ययन शुरू किया और इसके संरक्षण के लिए आवाज उठाते रहे। कई जगहों पर पक्षी हाट बंद कराने के लिए भी अभियान चलाया। इस प्रयास में कई मानवजनित हादसों को भी झेला लेकिन वे विचलित नहीं हुए। उनके सतत प्रयास का ही नतीजा है कि कोसी दियारा में स्थानीय ग्रामीण गरुड़ों को संरक्षित कर रहे हैं। भागलपुर में भी गरुड़ों के लिए सरकारी तौर पर विशेष अस्पताल की स्थापना कराई है। दउश्री मिश्रा ने बताते हैं कि कोसी के कदवा दियारा में गरुड़ और गोगाबील पक्षी आश्रयणी में अगर देसी-विदेशी पक्षी संरक्षित है तो वहां के लोगों की महती भूमिका है। वहां के ग्रामीणों को पता है कि झील में अगर खर-पतवार, कुंंभी है तो वह पक्षियों का भोजन है। वह झील की सफाई करते हैं। अगर वे खर-पतवार नहीं खाएंगे तो जलाशय सूख जाएंगे और झील भर जाएगा। मछुआरों को पता है कि पक्षी बीट करते हैं, जिससे जल की उत्पादकता बढ़ती है। मछलियों को चारा मिलता है और मछलियां ज्यादा स्वस्थ होती है। पक्षियों का संरक्षण मानवता के लिए भी संदेश है।
अरविंद बताते हैं कि वर्ष 2000 में इन्हें बीएनएचएस द्वारा इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के लिए स्टेट को-ऑर्डिनेटर बनाया गया। इसके बाद वेटलैंड्स इंटरनेशनल के भी स्टेट को-ऑर्डिनेटर बनाए गए। पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा दो खंडों में प्रकाशित बर्ड्स इन बिहार के प्रकाशन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बीएनएचएस द्वारा प्रकाशित कई पुस्तकों में बिहार और झारखंड के अध्याय इन्हीं के सहयोग से लिखे गए। श्री मिश्रा बताते हैं कि आने वाले भविष्य में पक्षी और उनके आवास का अध्ययन फिर विलुप्त न हो जाए, इसके लिए नई पीढ़ी को अपने साथ जोड़ना शुरू किया है। ताकि जो काम अपने जीवन काल में नहीं कर पाएंं वो आने वाली पीढ़ी करती रहे। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि आज युवा वर्ग पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने से पहले लाभ की बात पूछते हैं। उन्हें यह सोचना चाहिए कि हर नागरिक कर्तव्य पारिस्थितिकी की रक्षा करना है। अरविंद कहते हैं कि सिर्फ पक्षियों का संरक्षण नहीं किया जा सकता है, इसके लिए पूरे परिवेश को संरक्षित करना होगा। किसी झील या तालाब में पक्षियों को संरक्षण देना है तो उसके जल,वहां उगे घास, पेड़-पौधे सभी को संरक्षित करने के लिए सोचना होगा। वेटलैंड्स होंगे तो भूजल बचेगा और आर्थिक खुशहाली आएगी।
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