कविता
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बड़ रही है जिस्म में दुखो से गर्मी,
थोड़ी तो मेरे जख्मो को हवा दे दे…
बहुत सह लिया दर्द तेरी दुनिया में,
अब तो ज़िन्दगी में थोडा सा मज़ा दे दे…
बेवफाई मिली मुझे हर राह, हर सफ़र,
अब तो किसी मोड़ पे वफ़ा दे दे…
अंधेरो से लगने लगा है अब डर,
उजालो भरी मुझको नई सुबह दे दे…
गर नहीं है कुछ देने को तेरे पास,
तो मुझको तू आज कुछ ऐसी सजा दे दे…
फिर से जीना चाहता हूँ मैं एक नई ज़िन्दगी,
इसलिए मुझे तू आज मरने की दुआ दे दे…..
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