कविता
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पिछले दिनों जिस तरह सरकार के लोकपाल बिल को लेकर संसद में हंगामा हुआ था,
उस घटना पर मैंने चार पंक्तिया लिखी थी, आपको सुना रहा हू.. अगर किसी भाई बंधू को बुरा लगे तो माफ़ी चाहूँगा…
मेरा मकसद किसी को आहत करने का नहीं है..
“किसी ने कहा ये बिल किस काम का, किसी ने कहा ये बिल किस बात का,
किसी ने मुद्दा उठाया धरम का, किसी ने उठाया मुद्दा जात का,
किसी ने मांग रखी आरक्षण की, कोई कह रहा इसे धोखा सरकार का,
किसी ने बात की मिलाने की, किसी ने मशवरा दिया निजात का,
हालत ऐसी हो गई सरकार के बिल की संसद में,
जैसे… धोबी का ******** न घर का न घाट का…”
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