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कोई है इनका भी

पहचान
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पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। एक तरफ जहाँ हम मृत प्रियजनों और पूर्वजो को याद करते है उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते है वहीं दूसरी और हमारे घर में उपेक्षित से हो गए है हमारे वृद्ध और बुजुर्ग | कई घर में हालात और भी दयनीय है | वो उनको वृद्धाश्रम में छोड़ आते है या घर से दर दर कि ठोकर खाने  को छोड़ देते है |एक ऐसे ही वृद्धाश्रम है जहाँ मैंने देखा है वो बुजुर्ग दिल में ये ही आस लिए जी रहे है की उनके जाने के बाद उनके बेटे या परिजन मुखाग्नि दे उनकी मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी | मगर ये आस अधूरी लिए ही वो इस दुनिया से चले जाते है |

उन्ही पलो में लिखी गयी मेरी रचना…………………………

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2002093001150101


बूढी कमजोर तरसती हुई आँखे
राह देख रही है अपनो के आने का
कोई है जो आएगा
कभी तो यहाँ से ले जायेगा
दिन ढल जाता है उम्र जैसे
बीते कई पड़ाव एक जैसे
कभी इंतजार रहा तेरा
इस दुनिया में आने का
अब इंतजार है दुनिया से जाने का
मगर फिर भी दिल में

उम्मीद एक शेष है
वो आएगा और एक सहारा

कंधे का उसका भी हो जायेगा
बूढी कांपती  बेबस बाँहे
तलाश रही है कोई सहारा
कोई आये थामे इसे
कर दे उसका उद्धार
जैसे कभी थामी थी वो उँगलियाँ
नरम नाजुक नन्ही हथेलियाँ
थमा था कई बार जिसे
थपका था कई बार जिसे
आज वो काँप रही है
कोई नहीं जो थामे उसे
फिर भी आस मन में एक जगी है
कोई आगेगा और देगा मुखान्गिन उसे
मगर ये जगी आस भी रह जायेगी प्यासी
रोएगी रात भर तरसती निगाहें
फिर जागेगी और संजोएगी सपने कई
कोई है उसका भी
जो आएगा और तारेगा उसे भी
धुंधली आँखों और तरसती बाहों
का ख्वाब फिर टूट जायेगा
कोई है इस दुनिया में इनका भी
मगर यहाँ नहीं आयेगा मगर यहाँ नहीं आएगा
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