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सुनो !!! नामाबर
मेरे नाम से कोई तो
खत अब तुम ले आओ
लाओ उस खत के साथ तुम
सौंधी महक मेरे अपनों की
थोड़ी धूल, थोड़ी बारिश के छींटे भी
या तुम तपती गर्मी की
तपिश साथ ले आना
हमारे बिना जो खिला था
बसंत, शहर मे मेरे
उसकी खुशबु भी साथ ले आना तुम
या तुम उस खत के साथ
किसी की दुआएं साथ ले आना
पढ़ा नहीं बहुत सालो से कोई खत
जिसमे होती थी
कुछ अपनी कुशलता का विवरण
कुछ कामनाये हमारी कुशलता की
कुछ अपने सुख दुःख के किस्से
कुछ हमारे सुखो का
पूछा जाता था हाल
कुछ अपने बेफिक्री के आलम
कुछ नसीहते हमारी
बेफिक्री तबियत को
कुछ मौसम का हाल
और जानना खत के साथ
यहाँ के मौसम का मिजाज
साथ पूछ लेना
पड़ोसियों का भी हाल चाल
या फिर याद करना
नुक्कड़ की जलेबियों का स्वाद
घोल जाती थी वो सब बातें
खत मे भी मिठास
वो खत के अंत मे मांगा जाना
गलतियों के लिए माफ़ी
वो कहना बडो को प्रणाम,
देना छोटो को प्यार
आपके खत के इन्तजार मे
आपकी
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