पहचान
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दिन भी भी आराम से निकला
रात भी सलीके से बीत जायेगी
किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा
बात क्या थी भुला दी जायेगी
किसी के मांग का सिंदूर
फिर मिटा दिया जायेगा
किसी के हाथो की राखी
सुनी सुनी रह जायेगी
किसी के आँखों का इन्तजार
पत्थरा फिर जायेगा
किसी के बुढ़ापे का सहारा
अरमानो की अर्थी का बोझ उठाएगा
किसी कि ममता का दामन
आंसुओ में भीग जायेगा
किसी का अबोध बेटा
पिता का कंधा फिर तलाशेगा
किसी की आत्मजा
बाबा कह के किसको पुकारेगी
‘किसी का प्यार
अधूरा ही रह जायेगा
सुना है देश की सीमा में
फिर कोई जवान शहीद हुआ है
तिरंगे में लिपटा उसका शरीर
आज गाँव वापस आएगा
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