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“इलाज सम्भव है”

पहचान
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मुन्नी को छोड़ बेटा जब जगजीत  की ग़ज़ल गाने लगे
दोस्तों कि महफील में कम
घर की छत को तकते हुए पाया जाने लगे
सौ सौ  नखरे खाने पर जो निकलता था
शाम के खाने में क्या खायेगा बेटा कहने पर
कुछ भी चलेगा माँ कहने लगे
आईने के आगे खड़े हो कर
अपने को निहारने जब वो लगे
पूछने पर आप से लव यू मम्मा कह कर
गलबहियां डाल के मुस्कुराने लगे
संभल जाईये बेटा प्रेमरोग से ग्रसित  हो गया है
अभी से ही रोक लीजिये नहीं तो फंस वो गया है
इलाज संभव है पहले ही लक्ष्ण में
नहीं तो  रोग ये लाइलाज हो जायेगा

बेटा आप के हाथ से ही नहीं
घर छोड़ के भी चला जायेगा
आटे दाल का भाव मालूम  चलते ही
लोट  जरुर वो  आएगा
मगर तब तलक बेटा साथ अपने
बहु के साथ पोता भी ले आएगा
तब पछतावे के हाथ कुछ न आएगा
इलाज संभव है पहले ही लक्षण में
नहीं तो रोग ये लाइलाज बन जायेगा

बेटे को छिनने वाली को आप, एक आँख न देख पाओगी
घर को युद्ध का मैदान अपने ही वचनों से बनाओगी
आप भी भारतीय सास वाले रूप में आ जाओगी
बहु से तू तू मैं मैं कर अपनी ही शान घटाओगी
तब पछतावे के हाथ कुछ न आएगा
इलाज संभव है पहले ही लक्षण में
नहीं तो रोग ये लाइलाज बन जायेगा

बहु दिन भर कुडेगी, शाम को बेटे के कान वो भरेगी
एक की चार लगा कर, आप की शिकायत वो करेगी
बेटा भी गृह कलेश का शिकार हो जायेगा
बात बेबात आप की इज्जत को
तार तार वो कर जायेगा
तब पछतावे के हाथ कुछ न आएगा
इलाज सम्भव है पहले ही लक्षण में
नहीं तो रोग ये लाइलाज बन जायेगा

बुढ़ापा आप का अंधकारमय हो जायेगा
पाला पोसा था जिस दिन के लिए
वो दिन में तारे दिखायेगा
गठिया से ग्रसित काया को
वो गठरी बना के कहीं छोड़ आएगा
तब पछतावे के हाथ कुछ न आएगा
इलाज संभव है पहले ही लक्षण में
नहीं तो रोग ये लाइलाज बन जायेगा
नहीं तो रोग ये लाइलाज बन जायेगा

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