पहचान
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दुनियां से अलग एक जहाँ बनाना चाहती हूँ
मैं एक ऐसी दुनियां बसाना चाहती हूँ
जहाँ गम के बादल ठहरते न हो
आंसू की बारिश बरसती न हो
जहाँ लोगो का विश्वास हो अपनों पर
दुखो का बाज़ार सजता न हो
सजती हो जहाँ पर महफिलें दोस्तों की
दुश्मनों का पता कोई पूछता न हो
जहाँ दुनियां हो पर दुनियांदारी न हो
जहाँ दिल से मिले दिल उसमे मेहरबानी न हो
जुबान में दुआएं हो, किसी की दुवांये खाली न हो
टूटे बिखरे न कोई ख्वाब हो
मंजिलें बासिंदों की खुद तलबगार हो
जहाँ प्यार का नाम सिर्फ मिलन हो
जहाँ राधा की मोहन से जुदाई न हो
“मोहबत जहाँ सब की पूरी हो अधूरी न कोई कहानी हो”
जहाँ दर्द भी सब का अपना सा हो
एक आँख का मोती सब के संग ढले तो वो सागर का सा पानी हो
मैं एक ऐसी दुनियां बसाना चाहती हूँ
दुनियां से अलग एक जहाँ बनाना चाहती हूँ
“DIV”
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