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पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। एक तरफ जहाँ हम मृत प्रियजनों और पूर्वजो को याद करते है उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते है वहीं दूसरी और हमारे घर में उपेक्षित से हो गए है हमारे वृद्ध और बुजुर्ग | कई घर में हालात और भी दयनीय है | वो उनको वृद्धाश्रम में छोड़ आते है या घर से दर दर कि ठोकर खाने को छोड़ देते है |एक ऐसे ही वृद्धाश्रम है जहाँ मैंने देखा है वो बुजुर्ग दिल में ये ही आस लिए जी रहे है की उनके जाने के बाद उनके बेटे या परिजन मुखाग्नि दे उनकी मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी | मगर ये आस अधूरी लिए ही वो इस दुनिया से चले जाते है |
उन्ही पलो में लिखी गयी मेरी रचना…………………………
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बूढी कमजोर तरसती हुई आँखे
राह देख रही है अपनो के आने का
कोई है जो आएगा
कभी तो यहाँ से ले जायेगा
दिन ढल जाता है उम्र जैसे
बीते कई पड़ाव एक जैसे
कभी इंतजार रहा तेरा
इस दुनिया में आने का
अब इंतजार है दुनिया से जाने का
मगर फिर भी दिल में
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