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फरवरी लगते ही मैंने मौसम में एक सुखद बदलाव महसूस किया | जनवरी की जो कंपकंपाती ठंड थी फरवरी लगते ही वो बहुत कम हो गई है ,वैसे तो बसंत दस्तक दे रहा है | चारों तरफ बसंती बहार है | कहीं खेतो में पीली पीली सरसों के फूल खिल रहे है तो वहीँ पहाड़ों में पलाश के पेड़ो में कलियाँ फूट रही है | यही तो संकेत है बसंत के आगमन का,, वैसे तो सभी मौसम अच्छे लगते है मगर जब अति आने लगती है तो सब परेशान हो जाते हैं|
सर्दी का मौसम लगा नहीं कि सभी के बातों में एक विषय सर्दी का भी रहता है……अरे भाई कितनी सर्दी है ,हाड़ कंपाती ठंड ने तो घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया है ……………..वहीँ औरतों का तो सबसे प्रिय मौसम जैसे सर्दी ही हो
घरेलू काम निमटा के स्वेटर बुनती हुई , ऑफ़िस के लंच ब्रेक में नया नमूना सीखती हुई | मगर वह भी इस मौसम से त्रस्त रहतीं हैं |
बस फिर इंतजार गर्मियों के आने का गर्मी के मौसम से भी सभी बेहाल ही रहते है ……………..उफ़ कितनी गर्मी है ऊपर से बिजली विभाग कि मेहरबानी, सब लोगो कि परेशानी का सबब बनती है | पहले जब रात को पवार कट होता था हम बहुत खुश होते थे ……..खुले आँगन में सब के बिस्तर लग जाते थे | और हम बच्चे मिल कर तारे कि गिनती शुरू कर देते थे | और कभी अचानक टूटता तारा देख ले तो बहुत सारी भोली सी मन्नत मांगते थे |
मगर अब वो बात नहीं रही न तो खुला आँगन रहा न खुले आँगन में सोने का चलन ही अब रहा | वैसे ये अलग विषय है इस में फिर कभी सोचा जायेगा …..मगर अब पवार कट होते ही बिजली विभाग को कोसना शुरू हो जाता है साथ ही गर्मी से कैसे छुटकारा पाया जाये ये सोचा जाने लगता है |
अब गर्मी से तो बरसात ही राहत दे सकती है | तो शुरू हो जाता है बरसात का इंतजार …………………….आह बरसात मेरा पसंदीदा मौसम और बहुत से लोगो का भी ……कवि मन बरसात में हमेशा खुश रहता है | मगर सभी मन तो कवि नहीं होता | इस मौसम कि भी अपनी मुश्किलें है | पिछले बार कि बरसात याद है न पूरे भारत के साथ उत्तराखंड में भी भारी तबाही मचाई थी इस निर्मोही बरसात ने | कहीं अति ओलावृष्टि ने खेत तबाह किये तो कही अति वृष्टि ने पूरे गाँव के गाँव , कहीं बदल फटने से कई मासूम कि खिलखिलाहट शांत हो गयी तो कहीं शांत वादियों में हलचल मचा गयी पिछली बरसात | | गंगा खतरे के निशान के ऊपर आ गयी तो वहीँ यमुना भी अपने उफान पर आ गयी |
बसंत के मौसम का एक अलग ही महत्व है | बसंत पंचमी उमंग, उल्लास, उत्साह, विद्या, बुधि और ज्ञान का पर्व है ,,इसी दिन हम माँ सरस्वती का जन्मोत्सव मनाते हैं | सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
इसी दिन सरस्वती पूजन का विधान है | मुझे याद है अब भी स्कूल के दिनों कि जब स्कूल में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन होता था | पूजन में मैम और सीनियर (10 और +2 ) कि छात्राए ही आगे पूजन में शामिल होती थी | हम को पीछे बैठाया जाता था | हम बस उस दिन का ही इंतजार करते थे कि कब हम भी आगे बैठे | पूरा स्कूल पीले फूलों से सज जाता था और पीले ही वस्त्रो में सजी हम सब छात्राए | पूजन में शामिल हो कर हम सिर्फ एक ही कामना करते कि माँ अच्छे नम्बरों से पास हो कर आगे बढे |
स्कूल छूटते ही वो सब बाते भी छूट गयी है, मगर उस का महत्त्व आज भी मेरे लिए उतना ही है |
आज का वक्त इतना आपाधापी वाला हो गया है | हर दम आगे निकलने कि दौड़ में अपना खुद को भूलते जा रहे है | सब कुछ पाने कि लालसा में छोटी छोटी ख़ुशियों को भूलते जा रहे है | हम लोगों ने जीतने की चाहत में ऐसे ऐसे कदम उठाये हैं कि हारने के डर ने कुंठा को जन्म दे दिया है, जो हर दम हम को निराश और हताश माहौल में ले जाती है | निराशा ने हमारे अंदर ऐसा घर कर लिया है कि हम अपने आस पास बिखरी खूबसूरती का आनन्द ही नहीं ले पाते | कोई भी मौसम हो हम चूहा दौड़ में उलझे रहते हैं |
जैसे बसंत के आते ही हर जगह फूलो ने खूबसूरती और खुशियाँ बिखेर दी है | वैसे ही मेरी भी यही कामना है कि सब के जीवन में ये बसंत आ कर ठहर जाये और जीवन को उमंग एवं उल्लास भर दे , सबके जीवन में ख़ुशियों के फूल खिलें और बसंत ऋतू जैसा उल्लास और उमंग सबके जीवन में बना रहे |
जीवन में ख़ुशियों के फूल खिलें,
उपवन सा ये जीवन महके ,
प्रस्फुटित हो रही कोपल की ,
कोमलता जीवन में भर दे ,
वासन्तिक मधुरिम बेला ये ,
हर तन में स्पन्दन भर दे ,
इस नवल पर्व की पावनता में ,
कुछ नवीन संकल्प करें ,
इस ज्ञान पर्व की छावों में ,
माँ भारती को नमन करें ,,
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