Menu
blogid : 3085 postid : 421

बसंती बयार

पहचान
पहचान
  • 56 Posts
  • 1643 Comments

Butea_monosperma1

महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
बही बसंती बयार जो
साथ फ़िज़ा मैं महक चली
फूल ये पलाश के
दहक रहे है आग से
सुगंध रच-बस सी गयी
महकी महकी ये साँस चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
नव यौवना का रूप लिए
पुष्पों का श्रृंगार किये
धानी चुनर को ओढ़ कर
वसुंधरा भी सज चली
बहारों की सौगात चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी ये रात चली
पेडों की टहनियों मे
खिलने लगे रंग बहार के
दूर कहीं कोयल कुहुके
पीहू-पीहू करे पपीहा रातो मे
सुर लहरियां अब बह चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
sarson

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh