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-: नादंधींनम जगत् सर्वं:-
इस सृष्टि के अस्तिव मूल मे नादं ब्रह्म है जो इस चराचर जगत् को संचालित करने का कार्य करता है
ॐ एक ऐसा नादं ब्रह्म है जिसके अधीन सम्पूर्ण जगत् है जो शब्द अतीत है व परब्रह्म का अनादि स्वरुप भी जिसमे सम्पूर्ण जगत् विघमान है जिसका ना तो आदि है ना ही मध्य है और ना ही अन्त जो अनादि है अन्नंत है तथा सनातन भी इसी नादं ब्रह्म से ही इस जगत् की उत्पति हुई है इसी का उच्चारण इस सृष्टि के सभी जीव प्रत्येक क्षण करते है ॐ के मूल भागों के स्वरुप जिसमे मूलत: साढे तीन भाग होते है प्रथम “अ”अष्टांगयोग मे श्वास ग्रहण करने की क्रिया को पूरक कहा जाता है जो निर्माण का भी सूचक है जो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव को परिभाषित करता है द्वितीय श्वास रोकने की क्रिया को कुम्भक कहा जाता जिसमे श्वास को ना ही ग्रहण किया जाता है और ना ही छोड़ा जाता है जिससे “उ” की ध्वनि गुन्जायमान होती है जो पालनकर्ता अर्थात नारायणं को परिभाषित करता है तृतीयं श्वास शरीर से बाहर निकलने की क्रिया को रेचक कहा जाता है जिससे “म” की ध्वनि गुन्जायमान होती है जो इस सृष्टि के विनाशकर्ता महेश को परिभाषित करती है और अन्तिम भाग को परम शून्य कहा जाता जिसका नाद ही नही होता इस कारण परम शून्यं ना होकर भी अवश्य है और होकर भी नही है जो इस सृष्टि की निर्गति का मूल स्त्रोत्र है जो परब्रह्म का अनादि स्वरुप भी जिससे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णुः व महेश) की उत्पति हुई है तथा त्रिदेवियों(सरस्वती, लक्ष्मी व काली) की उत्पति हुई है. इस प्रकार इस जगत् के चौरासी लाख प्रकार के जीव निरन्तर इस नादंं ब्रह्म का उच्चारण करता है तथा यह नादं ब्रह्म सभी जीवों को जीवन शक्ति प्रदान करता है.
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