who am I?
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दुख घन में दिनकर दुबक गया है।
सांझ बेला भी निकट है।
मग तिमिर से अट गया है।
ऐसे समय में क्या?
जीवन पथ में वह खड़ा भ्रमित है?
या कि मंजिल ही यही थी?
कौन जाने? कौन बूझे?
छलना नियति की
अद्भुत पहेली?
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