Menu
blogid : 15007 postid : 1340222

रविदास

who am I?
who am I?
  • 17 Posts
  • 4 Comments

IMG_20170711_080224_480
बिनु देखै उपजै नहिं आसा। जो दीसै सो होइ बनासा।।
बरन सहित जो जापै नामु। सो जोगी केवस निहकामु।।

कृष्ण आते हैं, कबीर आते हैं, रैदास आते हैं। थोड़े से ही लोग उनका लाभ ले पाते हैं। अधिक लोग तो यही समझते हैं कि ये भी शायद शास्त्र को ही दुहरा रहे हैं। शायद ये भी शास्त्र की ही व्याख्या कर रहे हैं। नहीं, संत शास्त्र की व्याख्या नहीं करते। शास्त्र संतो की व्याख्या करते हैं। शास्त्र साक्ष्‍य देते हैं कि संत जो कह रहे हैं, ठीक कह रहे हैं। यदि संत के शून्य से सत्संग में परिचय बन जाये, तो पूर्ण से परिचय बनने में देर न लगेगी।
.
दिल को बना हरम-नशीं, तौफे-हरम नहीं, न हो।
मानीए-बन्दगी समझ, सूरते-बंदगी न देख।।

मंदिर की प्रदक्षिणा हो, न हो, दिल को ही मंदिर बनाओ। प्रार्थना का अर्थ वहीं समझा जा सकता है, जहां प्रार्थना जीवित हो। नहीं तो सब बाह्य उपचार है। मन चंगा तो कठौती में गंगा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply