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‘प्यासी धरती…’

antarman
antarman
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देकर चोट बहुत मुझको,
अब थोड़ा रुक जाओ तुम,
बोल रही है प्यासी धरती,
इतना न तड़पाओ तुम..

छीन लिया हरियाला आँचल,
बना के ऊंची अट्टालिकाएं,
देकर भार सीने पर मुझको,
थोड़ा तो शर्माओं तुम,

बोल रही है प्यासी धरती,
इतना न तड़पाओ तुम..

भौतिक सुख की चाह में तुमने,
हर पल मुझको रौंदा है,
करवाके ज़हरीली बारिश,
इतना अब न जलाओ तुम,

बोल रही है प्यासी धरती,
इतना न तड़पाओ तुम..

जोड़ के गावों को शहरों से,
तुमने बड़ा है काम किया,
ख़त्म किये फसलों के निशां,
अब भूखे रह जाओ तुम,

बोल रही है प्यासी धरती,
इतना न तड़पाओ तुम..

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