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हरियाणा में चले जाट आंदोलन का रेलवे पर पड़ा वास्तविक दुष्प्रभाव समय बीतने के साथ सामने आ रहा है क्योंकि अभी भी उस समय जलाये गए रेलवे स्टेशनों और सिग्नल प्रणाली के काम न करने से इन क्षेत्रों में सवारी गाड़ियों के संचालन पर बुरा प्रभाव पड़ा हुआ है तथा रेलवे की तरफ से गंभीर प्रयास किये जाने के बाद भी मार्च भर में इनके आंशिक रूप से ही चल पाने की ही संभावनाएं हैं. अपनी लम्बी दूरी की गाड़ियों के सञ्चालन के लिए जिस तरह से रेलवे ने प्रयास कर उनको वापस ट्रैक पर लाने का काम करने में सफलता पायी है वहीं छोटे स्टेशनों पर सिग्नल आदि प्रणाली पूरी तरह से जल जाने के चलते सम्पूर्ण सञ्चालन शुरू कर पाना पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया है और खुद रेलवे का भी यही मानना है कि आने वाले तीन चार महीनों में भी यह सेवा शुरू कर पाना आसान नहीं होने वाला है. यह सही है कि रेलवे के पास बेहतर संसाधन भी हैं और उनके उपयोग के लिए मानव शक्ति भी है पर जिस काम को करने की एक न्यूनतम समय सीमा हुआ करती यही उसे किसी भी तरह से शीघ्रता से नहीं निपटाया जा सकता है और जब मामला यात्रियों की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ हो तो सावधानियां हर स्तर पर रखनी ही पड़ती हैं.
क्या देश में ऐसे आंदोलनों को देखते हुए अब कड़े कानून बनाये जाने की आवश्यकता नहीं है जिसमें किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति को होने वाले नुकसान को देखते हुए उस क्षेत्र विशेष में लोगों पर विशेष अर्थदंड नहीं लगाया जाना चाहिए और सरकार को अविलम्ब उन क्षेत्रों में बसों रेलवे की सुविधाओं को निलंबित कर देने के बारे में नहीं सोचना चाहिए ? देश की संपत्ति को इतना नुकसान करके किसी भी आंदोलन को क्या हासिल हो सकता है यह सोचने और उस पर नए सिरे से विचार करने का समय भी आ ही गया है. जिन क्षेत्रों में रेलवे को इतने बड़े पैमाने पर नुकसान झेलना पड़ा है अब उन क्षेत्रों में सेवाएं सुधरने के बाद भी कम से कम छह महीनों के लिए रेलवे का परिचालन बंद रखना चाहिए जिससे लोगों को यह समझ में आ जाये कि अपनी संपत्ति का ही नुकसान करने से किस तरह की समस्याएं सामने आ सकती हैं ? इन सभी मार्गों के स्टेशनों से खरीदे जाने वाले हर श्रेणी के टिकटों पर एक उपकार लगाया जाना चाहिए जिससे रेलवे को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके तथा जब तक इस नुकसान को पूरा नहीं किया जाता है तब तक इन क्षेत्रों में कि नागरिक सेवाओं में दी जाने वाली हर तरह की सब्सिडी को भी बंद कर दिया जाना चाहिए और वह धनराशि रेलवे और रोडवेज़ को नुकसान भरपाई के रूप में देनी चाहिए.
सरकार को इस तरह के देश की संपत्ति को नुकसान करने वाले किसी भी आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए अब कठोर नियम बनाने ही होंगें जिससे इन नियमों का भय आम लोगों को इतना अराजक होने से रोकने का काम करे तथा जिस भी सरकारी संपत्ति को नुकसान होता है उसे भी स्थानीय लोगों से ही वसूला जाना चाहिए. कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार और नेता अपने वोटबैंकों के लालच में इस काम को रोकना ही नहीं चाहती तो सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करना चाहिए और इस तरह के कानून को बनाने के बारे में उसकी मंशा जानते हुए कठोर नियम बनाने के बारे में निर्देशित भी करना चाहिए. देश की संपत्ति को किसी भी मांग के लिए नुकसान पहुँचाने के लिए किसी भी स्तर पर नुकसान पहुँचाना सही नहीं कहा जा सकता है और इससे बचने के लिए अब सोचने का समय आ भी गया है. आम जनता के रूप में हमें और किसी आंदोलन में शामिल सभी लोगों को अब शालीनता को अपनाना ही होगा वर्ना इस तरह के कठोर दंड को भुगतने के लिए तैयार भी होना पड़ेगा.
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