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आरोप कानून और वास्तविकता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में परस्पर विरोधी राजनैतिक धाराओं के एक दूसरे पर लगातार किये जाने वाले हमले समाज में किस तरह से भय का माहौल बना सकते हैं यह आजकल आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि जिस तरह से आज छोटी सी अफवाह पर कानून को हाथ में लेने की एक गलत परिपाटी शुरू होती हुई दिखाई दे रही है उसके बाद आने वाला समय समाज के लिए और भी बड़ी चुनौतियाँ सामने लाने वाला है. यह सही है कि कानूनी रूप से देश के अधिकांश राज्यों में गो मांस पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है पर जिस तरह से किसी को भी इस काम में शामिल बताकर कानून अपने हाथ में लेने का चलन बढ़ता ही जा रहा है वह कहीं से भी देश के लिए अच्छा साबित नहीं होने वाला है. यह एक सामाजिक समस्या है और इससे समाज के स्तर पर ही निपटने की कोशिशें की जानी चाहिए क्योंकि कानूनी स्तर पर इससे निपटने में जहाँ कई स्तरों पर आरोपों प्रत्यारोपों का अवसर मिलता है वहीं सामाजिक ताने बाने को भी बहुत अधिक नुकसान होता है. राजनीति किस तरह से किसी भी व्यक्ति को इतना नीचे तक जाने के लिए बाध्य कर सकती है यह आजकल इन सभी मुद्दों में आसानी से देखा भी जा सकता है.
लखनऊ के ग्रामीण इलाके में जिस तरह से मांस और हड्डियां पाये जाने के बाद उसके पास के एक चर्च को नुकसान पहुँचाया गया वह कहीं न कहीं से इस मामले की पुष्टि ही करता है कि हर इस काम के पीछे कहीं न कहीं से सुनियोजित षड्यंत्र भी होता है क्योंकि गांवों में लागों को आमतौर पर अपना भाईचारा अधिक प्यारा होता है और वे इस तरह के विघटनकारी कामों से दूर ही रहा करते हैं पर कवाल कांड के बाद जिस तरह से यह सामजिक प्रदूषण गांवों की तरफ पलायन करता हुआ दिख रहा है उस पर समय रहते ही विचार करते हुए कड़े अंकुश लगाने की आवश्यकता भी है क्योंकि आने वाले समय में यदि यह सब बढ़ता है तो शहरों के मुकाबले ग्रामीण अंचलों में जीवन बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि कवाल कांड के बाद अविश्वास के चलते लोगों के लिए खेतों तक जाना भी मुश्किल हो गया था और उसका सीधा असर लोगों की कमाई पर भी पड़ता हुआ दिखाई दिया था. किसी भी तरह के सामाजिक बवाल के बाद उसके दुष्परिणाम सदैव समाज के स्थानीय लोगों को ही झेलने पड़ते हैं और इनसे बचने का रास्ता केवल सामाजिक सद्भाव से होकर ही जाता है.
इस तरह के किसी भी मामले को केवल सामाजिक समस्या भी नहीं माना जा सकता है क्योंकि कई बार राजनैतिक कारणों से पुलिस कार्यवाही भी समय से नहीं होती है जिससे समाज के दुश्मन कुछ लोगों को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि पुलिस सदैव हमारे विरोध में ही रहती है तो मौके पर ही निपटारा कर लेना चाहिए जो कि बहुत ही अधिक वैमनस्य को बढ़ाने वाला काम होता है. क्रिया प्रतिक्रिया भी उस स्तर पर शुरू हो जाती हैं जहाँ तक उन्हें एक सभ्य समाज में पहुंचना ही नहीं चाहिए. पूरे देश में इस समस्या से निपटने के लिए पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष रूप से काम करने के बारे में सोचना ही होगा तभी समाज का भला हो सकता है. यदि असामाजिक तत्वों को इस बात का एक बार अंदाज़ा हो जाये कि उनकी इस तरह कि हरकत पर उन्हें कड़ी सजा मिल सकती है तो इस पर पूरी तरह से रोक लगाने के प्रयास सफल भी हो सकते हैं वर्ना हमेशा की तरह कुछ लोग समाज के सद्भाव को बिगड़ने में सफल ही होने वाले हैं.

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