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इंसानी आबादी में वन्य जीव

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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लखनऊ के आवासीय क्षेत्र में जिस तरह से तीन दिनों तक एक तेंदुएं के चलते आतंक मचा रहा और उससे निपटने के लिए वन विभाग की टीम के पास कोई कारगर योजना नहीं दिखाई दी, उससे यही पता चलता है कि किसी हिंसक जीव के शहरी क्षेत्र में आ जाने के बाद उसको जान से मार देने के अतिरिक्त कोई अन्य चारा नहीं है? तेंदुआ भी संरक्षित प्रजातियों में आता है और उसकी पुलिस की गोली से मरने के बाद वन विभाग अपनी कार्यवाही करने को तत्पर तो दिखाई देता है, पर जिस तरह से पुलिस ने अकेले दम पर इस समस्या से निपटने की कोशिश की, क्या वह वन विभाग के ऊपर बड़ा प्रश्नचिन्ह नहीं लगाती है?


leopard in lko


यह सही है कि वहां पर विपरीत परिस्थितियां थीं और उनसे निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं थे, तो आम लोगों की ज़िंदगी को बचाने के लिए कौन आगे आ सकता था? ऐसी परिस्थिति में वन्य जीवों से निपटने की कोई ट्रेनिंग न होने के बाद भी लखनऊ पुलिस ने अपने स्तर से सभी प्रयास किये और अपनी जान बचाने के लिए तेंदुए को मारने जैसा कदम उठाना पड़ा, पर इस पूरे प्रकरण में एक बात सामने आ गयी है कि ऐसी किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए जब सरकार की नाक के नीचे लखनऊ में विभिन्न विभागों के पास कोई कारगर योजना नहीं है, तो ग्रामीण क्षेत्रों और संरक्षित क्षेत्रों के आसपास रहने वाले लोगों के लिए क्या किया जा सकता है?


जिस तरह से बढ़ती आबादी का चलते जंगलों को काटा जा रहा है और उसके स्थान पर पेड़ लगाने का काम न के बराबर हो रहा है, तो एक दिन ऐसी संघर्ष की स्थिति पूरे देश में जगह जगह पर दिखाई दे सकती है और अधिकांश स्थानों पर बिना ट्रेनिंग के काम करने वाले पुलिस और वन विभाग के लोग अंत में किसी संरक्षित जीव को मारकर अपना काम पूरा करते हुए दिखाई देने वाले हैं. इस बारे में अब संरक्षित वन क्षेत्रों में सभी सम्बंधित विभागों को और भी कठोरता से नियमानुसार काम करने की आवश्यकता है, क्योंकि जब तक इन जीवों के लिए स्थान सुरक्षित कर उनके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार नहीं किया जाता है, तब तक इस तरह का संघर्ष बढ़ता ही जाने वाला है.


इस मामले में किसी एक सरकार पर आरोप लगाने से परिस्थितियां बदलने वाली नहीं हैं, क्योंकि जब तक मनुष्यों और वन्य जीवों के बीच इस संघर्ष के उत्पन्न होने वाले कारणों पर रोक नहीं लगायी जाएगी, तब तक कुछ भी ठीक नहीं होगा. इस घटना से सीख लेते हुए अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को एक विस्तृत कार्य योजना पर राज्यों के साथ मिलकर चर्चा करने की आवश्यकता है, क्योंकि तभी पूरे देश में वन्य जीवों और मनुष्यों के इस अप्रत्याशित संघर्ष को कम करके रोकने की स्थिति पैदा की जा सकेगी.


वन विभाग और लकड़ी माफियाओं के गठबंधन को तोडे़ बिना इस दिशा में आगे बढ़ पाना संभव ही नहीं है. क्योंकि वन के सामान्य पारिस्थितिकी तंत्र तोड़कर जब हम वन्य जीवों को वहां से निकलने के लिए मजबूर कर रहे हैं, तो इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहेंगी. वन विभाग और पुलिस के माध्यम से अवैध वन कटान को रोकने और जहाँ जंगल कम हो गए हैं, वहां उनको संरक्षित कर पुनः पेड़ लगाने के काम पर यदि सही तरह से ध्यान दिया जाये, तो इन जीवों को अपने क्षेत्र का अतिक्रमण करने की आवश्यकता नहीं पड़ने वाली है.


सघन वन क्षेत्रों के आसपास रहने वाले आम नागरिकों को भी इस तरह की किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए सामान्य बातें बताई जानी चाहिए, जिससे उनमें व्याप्त होने वाले अनावश्यक भय को दूर रखा जा सके. सरकारें केवल नियम बना सकती हैं, पर उन पर अमल करने के लिए जिस इच्छाशक्ति की निरंतरता के साथ आवश्यकता होती है, उसमें हम लोगों में पूर्णतः असफल हो जाते हैं. अब इस घटना को ध्यान में रखते हुए वन विभाग की ट्रेनिंग और अन्य परिस्थितियों पर विचार कर इस संघर्ष को समाप्त करने कि दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है.

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