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चुनाव सुधार – लोकतंत्र के अनुकूल

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में चुनावी परिदृश्य को किस तरह से सुधारते हुए लोकतंत्र को बचाये रखा जाये आज यह बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बाद भी आज हमारे देश के बहुत सारे क्षेत्रों में लोकतंत्र की आधारभूत परिकल्पना को जिस तरह से किनारे किया जा रहा है उससे कहीं न कहीं लोकतंत्र ही कमज़ोर हो रहा है और पूरे देश का लोकतान्त्रिक ढांचा केवल कुछ लोगों के हाथों में ही सिमट हुआ नज़र आता है. आज देश में संविधान की कसमें खाने वाले सभी राजनैतिक दल किस तरह से अपनी पार्टियों को कंपनियों की तरह चला रहे हैं यह चुनाव आयोग, संसद और सुप्रीम कोर्ट को संभवतः दिखाई ही नहीं देता है पर इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह है कि अंतिम रूप से लोकतान्त्रिक देशों में लोकतंत्र की रखवाली करने का दम भरने वाले इन राजनैतिक दलों की इस तरह की बदलती प्रक्रिया के चलते ही समाज के अवांक्षित तत्वों को लोकतंत्र में अपनी जड़ें मज़बूती से ज़माने का अवसर भी मिलने लगा है जिससे देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों में लगातार ह्रास ही होता जा रहा है. इस समस्या से निपटने के लिए कोई भी राजनैतिक दल अपने अंदर से बदलाव करना ही नहीं चाहता है क्योंकि उन्हें इस तरह के प्रक्रिया के अपनाये जाने के बाद अपने प्रभुत्व और प्रभाव पर ही संकट नज़र आने लगता है.
देश में लोकतंत्र की मज़बूती और त्रि-स्तरीय लोकतंत्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए अब सभी दलों को अपने संगठन के हर स्तर पर लोकतंत्र अपनाना ही होगा क्योंकि जब दलीय निष्ठा के साथ काम करने वाले लोग एक विचारधारा के साथ होंगें तभी वे अपने जैसे लोगों के साथ मिलकर देश के लिए बेहतर सोच सकते हैं. आज जिस तरह से हर दल में केवल राजनैतिक लाभ लेने के लिए चुनाव के समय दूसरे दलों के महत्वपूर्ण और प्रभावशाली नेताओं को अपने में शामिल करने की जो होड़ दिखाई देती है वह देश के लोकतंत्र के लिए कहीं से भी शुभ संकेत नहीं है. ग्राम और शहरी क्षेत्रों में हर राजनैतिक दल के लिए अपनी पार्टी का गठन किया जाना भी मान्यता में एक आवश्यक पहलू होना चाहिए और इन स्थानों पर नियमित रूप से गुप्त मतदान के माध्यम से पार्टी पदाधिकारियों का चयन भी किया जाना चाहिए जिससे बड़े नेताओं के साथ सम्बन्ध बनाकर लोकतंत्र में हवाई नेताओं द्वारा महत्वपूर्ण पदों को न हथियाया जा सके. जब निचले स्तर से ही पार्टी में चुनाव होगा तो उसके लिए विचारधाराएं महत्वपूर्ण हो जायेंगीं जिससे लोकतंत्र में अपने आप ही विचारधाराओं के स्तर पर विमर्श भी शुरू किया जा सकेगा. इन चुनावों को भी चुनाव आयोग के दिशा निर्देश में ही कराया जाना चाहिए और पार्टियों के लिए सरकार की तरफ से इसके लिए ईवीएम के उपयोग की अनुमति भी होनी चाहिये जिससे तहसील या ज़िले स्तर पर ही पार्टियों के चुनाव कार्यक्रम के अनुरूप आयोग की देखरेख में ये चुनाव कराये जा सकें.
देश के सभी राजनैतिक दलों को भी अपने स्तर से कार्यकर्ताओं को लोकतंत्र के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में यही कार्यकर्त्ता अपने क्षेत्रों में सत्ता की धुरी भी बन जाते हैं. प्रतिवर्ष हर जनपद या तहसील में वहां की समस्याओं को समझने के लिए एक स्थानीय जन चेतना सभा का आयोजन करना चाहिए जिसमें सभी राजनैतिक दलों के ज़िले या तहसील के सांसदों, विधायकों और पार्टी नेताओं की उपस्थिति अनिवार्य की जानी चाहिए जिससे वे साल में एक बार अपने क्षेत्र की वास्तविक समस्याओं के लिए जनता के बीच हों और उनकी बात तथा आवश्यकतओं की पूर्ति के लिए प्रस्ताव भी पारित करें. जिलाधिकारी के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि इस तरह की सभा में पारित प्रस्तावों को वे राज्य एवं केंद्र सरकार को उचित तरीके से भेजें तथा अगली सभा में इस पर क्या प्रगति हुई इसके बारे में आख्या भी दें. २/३ बहुमत से किये गए प्रस्ताव को मानने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के लिए भी बाध्यता होनी चाहिए जिससे विकास की अवधारणा को देश के निचले स्तर तक आसानी से पहुँचाया जा सके. लोकतंत्र में नेता नहीं जनता महत्वपूर्ण है यह नेताओं को समझना ही होगा क्योंकि केवल मतदान के लिए जनता की आवश्यकता को सबसे बड़ा मानने वाले किसी भी नेता के दिल में लोकतंत्र के स्थान को आसानी से समझा जा सकता है.

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