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बिसराड़ा-अराजकता और समाज

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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एक शांत पड़े गाँव में हिन्दू बहुल आबादी के बीच बसे हुए दो मुस्लिम परिवारों के लिए एक अफवाह किस हद तक खतरनाक साबित हुई यह बिसराडा, दादरी (यूपी) में गोमांस खाने के नाम पर अराजक भीड़ द्वारा की गयी एक पचास वर्षीय व्यक्ति अख़लाक़ अहमद की हत्या से समझा जा सकता है. अभी तक सामने आई ख़बरों के अनुसार गांव में शांति पूर्वक लोहार का काम करने वाले इस व्यक्ति को एक अफवाह के बाद जिस तरह से पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया गया उसकी केवल निंदा करने से ही काम नहीं चलने वाला है क्योंकि अब यह भी सामने आ रहा है कि व्हाट्सएप के द्वारा कुछ फोटो दिखाकर जिस तरह से गांव में माहौल को ख़राब किया गया उससे निश्चित तौर पर किसी को राजनैतिक लाभ मिलने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. यूपी में अब पंचायती चुनाव ज़ोर पकड़ रहा है और इस परिस्थिति में किसी भी गांव में इस तरह की बात करके केवल अफवाहों के दम पर लोग कितनी आसानी से अपने राजनैतिक हितों को साध रहे हैं यह अब किसी से भी छिपा हुआ नहीं है और यूपी की धार्मिक संवेदनशीलता को देखते हुए आज यह एक बड़ा मुद्दा भी बन सकता है.
धार्मिक मामलों में अक्सर अनिर्णय का शिकार रहने वाली सपा के लिए यह मसला भी किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि केवाल कांड में भी जिस तरह से पुलिस और प्रशासन की चुप्पी के चलते पूरा पश्चिमी यूपी अराजता और सांप्रदायिक संघर्ध में उलझ गया था अभी उसको बहुत समय नहीं बीता है और पंचायत चुनावों से पहले एक बार फिर कुछ तत्वों द्वारा इस तरह के प्रयास शुरू कर दिए जाने से पुलिस और यूपी सरकार के लिए समस्याएं बढ़ ही गयी हैं. इस मामले में जिस तरह से मृतक एक घर के पास के मंदिर से लोगों को भड़काने की कोशिशें की गयीं और उसके बाद पूरा माहौल इस कदर अराजक हो गया कि एक निरपराध व्यक्ति को अपनी जान गंवानी पड़ी और आज उसका बेटा मौत से जूझ रहा है. क्या हम सभी धर्म के नाम पर इतने अराजक होकर अपने धर्म का भला कर पा रहे हैं या फिर शांत माहौल में जीने की आदत बना चुकी आज की आधुनिक युवा पीढ़ी के लिए एक संशय और समस्याग्रस्त समाज छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं ? हिन्दू आबादी के बीच सुख से रहने वाले अख़लाक़ की आखिर क्या गलती थी यह संभवतः कभी भी न पता चल पाये पर इस घटना ने एक दूसरे की मिश्रित आबादी में कम संख्या में रहने वाले परिवारों के लिए चिंता का कारण अवश्य ही बना दिया है.
देश में जिस तरह से इंटरनेट का प्रसार बढ़ता ही जा रहा है उसके बाद क्या हम उस स्थिति की भयावहता का अंदाज़ा भी लगा सकते हैं जब हर हाथ में मोबाइल तो होगा पर लोगों को यह नहीं पता होगा कि उस पर कितना विश्वास किया जाये ? दूसरे स्थानों यहाँ तक दूसरे देशों तक की फोटो और वीडियो को शेयर करके किस तरह से देश के कई हिस्सों में कुछ लोगों ने कई बार अराजकता का माहौल बनाने में सफलता पायी है उसके बाद यही लगता है कि सरकार को आने वाले समय में देश के हर मंडल स्तर पर एक सोशल मीडिया लैब की स्थापना करने के बारे में सोचना ही पड़ेगा जिससे गांव देहात तक भी सोशल मीडिया में इस तरह से फैलने वाली अफवाहों और उनके पीछे शामिल तत्वों पर नज़र रखी जा सके. सोशल मीडिया के अनगिनत लाभ हैं पर कुछ लोग इस तरह के कार्यों में उलझकर इसका भरपूर दुरूपयोग करने में लगे हुए हैं निश्चित तौर पर सरकार की तरफ से इन पर आपत्तिजनक सन्देश भेजने पर नज़र रखने की कोशिशें की जा रही हैं फिर भी लोगों को आज के आईटी एक्ट के बारे में बताया जाना आवश्यक भी है क्योंकि अधिकतर लोगों को यह भी नहीं पता है कि इस तरह के सन्देश आगे भेजने से उनके खिलाफ भी साज़िश में शामिल होने का मामला बन सकता है. कानूनी जागरूकता को बढ़ाकर आम लोगों को इस तरह के चंगुल में फंसने से रोका भी जा सकता है.

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