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भाजपा में बे-असर अंदरूनी स्वर

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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सफलता के वाहक सभी होते हैं पर विफलताएं अपने आप ही ढोनी पड़ती हैं आज यह बात भाजपा में मोदी-जेटली-शाह की जोड़ी पर पूरी तरह से सही बैठती हुई नज़र आ रही है क्योंकि लोकसभा चुनावों के बाद बिखरे और हताश विपक्ष के चलते जिस तरह से कई राज्यों में भाजपा को लगातार सफलताएं मिलती रहीं उसके बाद इस तिकड़ी का वर्चस्व भाजपा और सरकार में बढ़ता ही चला गया था. जैसा कि पूर्वानुमान लगाया जा रहा था कि किसी भी स्तर पर बिहार में ब्रांड मोदी की आशा के अनुरूप प्रदर्शन न आने की स्थिति में भाजपा के वरिष्ठ अपनी तरफ से खुले विरोध को नहीं दबा पायेंगें आज लगभग वैसा ही दिखाई भी दे रहा है. इस पूरी कवायद में भाजपा में मोदी समर्थकों या विरोधियों के हाथों चाहे कुछ भी न आये पर देश का एक बड़ा नुकसान अवश्य ही होने वाला है क्योंकि जनता की तरफ से दिए गए स्पष्ट बहुमत का उतना लाभ देश को नहीं मिलने वाला है जितना मिल सकता था. कोई कुछ भी कहे पर सरकार चलने के कौशल में तो अभी तक मोदी उतने प्रभावशाली साबित नहीं हो पा रहे हैं जितना वे अन्य जगहों पर दिखाई देते हैं और संभवतः उनके इस कमी का लाभ पार्टी के वरिष्ठ और उनके विरोधी उठाना भी चाह रहे हैं.
भाजपा में मोदी विरोधियों को एक बात समझनी ही होगी कि आज भी भाजपा में मोदी एक बड़ा ब्रांड हैं और देश में यह मानने वाले मोदी समर्थक बड़ी संख्या में हैं कि दिल्ली और बिहार में मुस्लिम ध्रुवीकरण के कारण ही मोदी की हार हुई है जबकि वास्तविकता केवल इतनी ही नहीं है और इसमें आगे भी बहुत कुछ आता है जिससे मोदी और पार्टी को अपने स्तर से ही निपटना भी होगा. निश्चित तौर पर भाजपा की राजनीति में अपने को मज़बूत करने के लिए ही मोदी ने वरिष्ठों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया पर मोदी की यही मानसिकता है कि वे अपने विरोधियों कोअभी तक इसी तरह से कुचलते रहे हैं तो क्या वरिष्ठ नेताओं के पास करने के लिए कुछ नहीं बचा है जो वे एक संख्या बल में मज़बूत पर वास्तविक रूप से परिणाम से पाने में कमज़ोर साबित हो रही भाजपा की मोदी सरकार पर हताशा में हमले करना शुरू कर चुके हैं ? इस तरह के बयांन और पार्टी में मोदी की स्वीकार्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले किसी भी नेता को आज की परिस्थिति में भाजपा का हितैषी तो नहीं माना जा सकता है वे हमलावर इसलिए भी हैं क्योंकि मोदी से उन्हें वह सब नहीं मिल रहा है जो भाजपा की सरकार आने के बाद उन्होंने अपना हक़ समझ रखा था.
एक बात मोदी के सन्दर्भ में और भी महत्वपूर्ण साबित होने वाली है कि क्या वे इस तरह की परिस्थिति से तालमेल बिठाने की कोशिश करेंगें या वे अपनी शैली को ही आगे बढ़ाते रहेंगें ? मोदी का दोहरा रवैया ही आज उनके लिए संकट बन चुका है क्योंकि वे जानते हैं कि गुजरात के २००२ के मोदी की स्वीकार्यता आज भी भारत के अधिकांश जन मानस में नहीं है और यदि मोदी का वह स्वरूप सामने आता है तो उनकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी बड़ा धक्का लग सकता है. बिहार चुनावों में मोदी की तरफ से संभवतः यही सबसे बड़ी गलती रही है कि जिन मुद्दों पर उन्हें खुलकर अपनी राय रखनी चाहिए थी वे चुनावी रैलियों में इस उम्मीद से उन पर नहीं बोले कि शायद इससे उनके वोट बढ़ सकते हैं पर कुछ मौकों पर उन्होंने अस्पष्ट रूप से अपनी राय भी रखी जो शायद उस वोटर को उनसे जोड़े नहीं रख पायी जो उनके पक्ष में जाना चाहता था. कट्टर राजनीति और मध्यमार्ग में भारतीय जन मानस आमतौर पर मध्य मार्ग को ही चुनता है यह बात इस चुनाव से स्पष्ट हो गयी है क्योंकि अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस के मुकाबले हर राज्य में पहुँचने की कोशिश कर रही भाजपा के कट्टर रवैया कितना विपरीत असर डाल सकता यह उन सीटों से पता चल गया है जिन्हें कांग्रेस की कमज़ोर स्थिति के चलते नितीश लालू ने सौंप दिया था पर शहरी वोटर्स ने भी भाजपा से दूरी बनाकर वहां पर हाशिये पर पड़ी हुई कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले परिणाम दे दिए हैं जो कि अन्य जगहों पर भाजपा के लिए बड़ा सरदर्द भी साबित हो सकती है.

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