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महिला सम्मान पर भाजपा का असमंजस

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कठुआ, उन्नाव और असम में हुए बलात्कार और उसके बाद होने वाली राजनैतिक नौटंकी में अपनी आंतरिक कलह के कारण आज सत्ताधारी भाजपा जिस भ्रम में दिखाई दे रही है यदि उससे बाहर निकलने का रास्ता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा नहीं खोजा गया तो २०१९ की उसकी संभावनाओं पर दुष्प्रभाव पड़ने की सम्भावनों से इंकार नहीं किया जा सकता है. कठुआ और उन्नाव में जिस तरह से भाजपा के नेता और पार्टी आरोपियों के साथ खड़े दिखाई दिए उससे सीधे तौर पर भाजपा के उस दावे का खोखलापन सामने आ गया है जिसमें वह दम भरकर कहती थी कि “नारी के सम्मान में भाजपा मैदान में”. पार्टी के नेताओं और केंद्र तथा राज्यों की सरकारों में शामिल मंत्रियों को अब यह समझना ही होगा कि पीएम मोदी की छवि एक हद तक ही उनकी मदद कर सकती है और स्थानीय स्तर पर जनता से जुड़ने के लिए पार्टी के स्थानीय तंत्र को अपनी मुखरता दिखानी ही होगी और उन मुद्दों का साथ देने से बचना होगा जिनके लिए विपक्षी दल पार्टी पर हमलावर हो सकते हैं पर निश्चित तौर पर कठुआ और उन्नाव की घटनाओं से भाजपा ने अपनी बढ़त को खुद अपने हाथों ही गंवा दिया है जिसके बाद इस मुद्दे पर कांग्रेस ने उस पर सीधा हमला करना शुरू कर दिया है।

प्रसिद्द वकील और भाजपा नेत्री मीनाक्षी लेखी ने जिस तरह से जम्मू और उन्नाव की घटना को असम की घटना के साथ जोड़ उसे धार्मिक रूप देने की कोशिश की उससे यही लगा कि भाजपा आज फिर से अपने हिंदुत्व के मंच पर लौटने की तैयारी में लग चुकी है. महिला और कानून की जानकर होने के बाद भी जिस तरह से उन्होंने मुद्दे को भटकाने का काम किया उससे भाजपा के लिए नयी तरह की समस्या सामने आ गयी है क्योंकि अभी तक उस पर न बोलने का आरोप था पर इस तरह बोलकर क्या पार्टी द्वारा विपक्ष को नया मुद्दा नहीं दे दिया गया है? आज जो काम दबाव में पार्टी द्वारा किया जा रहा है यह स्वेच्छा से भी किया जा सकता है और पीएम मोदी ने जिस तरह कल अपने सम्बोधन में दोषियों को दण्डित करने की बात की उससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि पार्टी और सरकार में सब ठीक नहीं चल रहा है और मोदी के जिताऊ होने के चलते अभी पार्टी के अंदर असंतोष सामने नहीं आ पा रहा है। उन्नाव मामले ने जिस तरह से सीएम आदित्यनाथ को कमज़ोर साबित किया वह निश्चित तौर पर भाजपा के कुछ नेताओं के लिए राहत की बात हो सकती है पर आने वाले समय में इसका दुष्प्रभाव पार्टी की चुनावी संभावनाओं और उसके समर्थकों में भी दिखाई देने वाला है।

यूपी में पार्टी के पूर्व मंत्री आईपी सिंह ने जिस तरह से ट्वीट करके उन्नाव मामले में सीएम के आरोपी विधायक सेंगर खिलाफ कानूनी कार्यवाही के लिए सहमत होने की बात और एक बड़े नेता के दबाव में मामले को लटकाने की बात कही गयी उससे पता चल गया कि भाजपा में सीएम आदित्यनाथ की आज क्या हैसियत है? एक समय अपनी पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार पर भाजपा इस बात का ताना मारती थी कि वहां पर ४ सीएम काम कर रहे हैं तो आज खुद भाजपा की सरकार कितने सीएम के साथ काम कर रही है यह स्पष्ट होने लगा है। पीएम मोदी को एक बात स्पष्ट रूप से समझनी होगी कि ये यूपी है और यहाँ जातियां समाज, धर्म और राजनीति में हमेशा हावी रहा करती हैं वो गुजरात में इस समस्या से निपट सकते हैं पर यूपी की जातीय व्यवस्था ने ही २००७ में मायावती, २०१२ में अखिलेश और २०१७ में योगी आदित्यनाथ को सरकार बनाने का मौका दिया है यहाँ विकास कोई मायने नहीं रखता बस जातीय समीकरण सध गया तो कालिदास मार्ग तक का रास्ता खुल सकता है। पीएम मोदी यदि अपनी बात को धरातल पर उतारना चाहते हैं तो सीबीआई को आईपी सिंह को गवाह बनाकर उस बड़े नेता के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत दिखानी चाहिए जिसके कथित रूप से कहने पर ही यूपी की आदित्यनाथ सरकार सेंगर पर हाथ नहीं डाल पायी थी।

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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