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राष्ट्रीय राजधानी – बिजली और प्रदूषण

***.......सीधी खरी बात.......***
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हमारे देश में सरकार चलाने वाले दलों, नेताओं और अधिकारियों को पता नहीं आम लोगों से जुड़े हर सरोकार के बारे में सोचने का मौका कभी मिलता भी है या नहीं क्योंकि पिछले दो दशकों से जिस तरह से जनहित से जुड़े हर मुद्दे पर देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से लगातार स्पष्टीकरण मांग कर आवश्यक निर्देश दिए जाते रहे हैं वे निश्चित तौर पर इस समय में देश चलाने वाली सरकारों और नेताओं के ज़मीनी हकीकत की समझ को ही दर्शाते हैं. ताज़ा मामले में जिस तरह से एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में २४ घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी की हैं वह आज की स्थिति को ही दर्शाती है क्योंकि एक तरफ एनजीटी के निर्देशों के चलते स्मॉग से निपटने की दिल्ली सरकार की कोशिशें रुक गयी हैं वहीँ केंद्र की तरफ से इस मामले में पूरी उदासीनता बरती जा रही है जो स्थिति को विधायिका से निकाल कर न्यायपालिका तक पहुँचाने की स्थिति उत्पन्न करने वाली है. केंद्रीय मंत्रियों को लगता है कि देश की न्यायपालिका अधिक सक्रियता दिखा रही है जबकि वास्तविकता यह है कि जिन कामों के लिए सरकारों को चुना जाता है वे उनमें पूरी तरह से विफल हो जाती हैं तभी सुप्रीम कोर्ट तक को किसी मामले में हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
विकास के मामले में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की अवधारणा शुरु किये जाने से पहले ही दिल्ली के आस पास बिजली की अच्छी उपलब्धता के कारण छोटे बड़े उद्योग लगने शुरू हो चुके थे जिसको बाद में नियमित करने और सुनियोजित औद्योगिक विकास के लिए एक कड़ी के रूप में जाना जाता है पर आज उस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की क्या हालत है यह किसी से भी छिपी नहीं है. इस परिस्थिति में यदि एनसीआर को २४ घंटे विद्युत् आपूर्ति की श्रेणी में लाया जा सके तो उससे यूपी हरियाणा में अन्य वैकल्पिक उपायों से होने वाले प्रदूषण से भी आसानी से निपटा जा सकता है. एनसीआर को २४ घंटे बिजली मिले यह कैसे संभव हो सकता है और यह बिजली कोयले के स्थान पर गैस से बन सके तो क्या सरकार इस बारे में कुछ सोच रही है ? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार से पूछे गए हैं. आमतौर पर ऐसे सवालों के जवाब आधिकारिक स्तर पर ही खोजे और दिए जाते हैं जिनका धरातल से कोई लेना देना नहीं होता है पर आज जिस तरह से सोलर पॉवर का उपयोग और उपलब्धता बढ़ती जा रही है तो इस परिस्थिति में एनसीआर के साथ पूरे देश के लिए दीर्घकालिक सोलर पॉलिसी बनाये जाने की आवश्यकता आ चुकी है क्योंकि दूर दराज के क्षेत्रों में बिजली का उत्पादन करना और उसे वितरण के लिए लाना अपने आप में ही बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है.
निश्चित तौर पर सरकार इस बारे में कुछ सोच रही होगी फिर भी यदि सोलर पॉवर की रूफ टॉप हार्वेस्टिंग के मॉडल को देश में लागू किये जाने पर विचार किया जाये तो आने वाले समय में एनसीआर के साथ देश के हर क्षेत्र में बिजली के संकट और उपलब्धता के मामले में महत्वपूर्ण सफलता पायी जा सकती है. इस पूरे परिदृश्य को बदलने के लिए अब सरकारों की सोलर पॉलिसी के स्थान पर कम से कम १० वर्षीय योजना पर काम अविलम्ब शुरू कर दिया जाना चाहिए. साथ ही सरकारी तंत्र की लूट से मुक्त होने के लिए किसी भी तरह की सब्सिडी को सीधे आवेदक लाभार्थी के खाते में भेजने की व्यवस्था भी होनी चाहिए. घरेलू सोलर प्लांट लगाने के लिए न्यूनतम कागज़ी कार्यवाही के साथ बैंकों को निर्देश दिए जाने चाहिए कि वे ऐसे मामलों को सम्पूर्ण रूप से स्वीकृत कर निपटाने के लिए समय सीमा में रहकर काम करें. इस पॉलिसी में देश में सोलर मॉड्यूल बनाने की व्यवस्था पर मेक इन इंडिया के अंतर्गत अभी से काम शुरू किया जाये जिससे बैंकों से धनराशि उपलब्ध होने की स्थिति में उपभोक्ताओं के पास अच्छे सस्ते और गुणवत्तापरक मॉड्यूल उपलब्ध हो सकें. यह आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में हर क्षेत्र में इच्छुक लोगों के यहाँ इस तरह की योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप चलाकर उसमें आने वाली समस्याओं पर ध्यान दिया जाये जिससे केवल एनसीआर ही नहीं बल्कि पूरे देश के ऊर्जा परिदृश्य को पूरी तरह से बदलने की योजना को सफल किया जा सके.

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