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अगस्ता जाँच और राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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१९९९ से देश के लिए अति महत्वपूर्ण लोगों के लिए सुरक्षित हेलीकाप्टर खरीदे जाने की जो प्रक्रिया शुरू की गयी थी इतना लम्बा समय बीत जाने के बाद भी वह अपने आप में अधूरी ही है क्योंकि देश में हर तरह के मुद्दों और आवश्यकताओं पर जिस तरह से राजनीति किये जाने की परिपाटी रही है उससे भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय ले पाना संभव नहीं हो पाता है और अधिकतर मामलों में सत्ताधारी दल अपने राजनैतिक लाभ को देखते हुए मसलों को उछालते रहते हैं. यदि इस बहाने से यह देखा जाये तो भ्रष्टाचार के विभिन्न मुद्दों को मोदी सरकार केवल चुनावों के समय ही उछालने की कोशिश करती है और चुनाव बीत जाने के बाद यह मुद्दे ठन्डे बस्ते में ही जाते हुए दिखाई देते हैं. कांग्रेस के लिए रोबर्ट वाड्रा ऐसी कमज़ोर कड़ी साबित हुए हैं जिसमें भाजपा को हर चुनाव में उनके बहाने कांग्रेस पर अच्छा ख़ासा हमला करने का अवसर मिल जाता है पर जब चुनाव समाप्त हो जाते हैं तो उन मुद्दों का कुछ पता नहीं चल पाता है. इस बार भी फरवरी माह में आये एक फैसले पर जिस तरह से चुनावी समय में संसद से लगाकर सड़कों तक अगस्ता की चर्चा है क्या वह भी बोफोर्स के भूत की तरह ही साबित नहीं होने वाला है ? क्या भाजपा इस तरह की रणनीति को अब लम्बे समय तक चला पाने में सफल होने वाली है क्योंकि मोदी सरकार भी अपने कार्यकाल का ४०% हिस्सा पूरा करने की तरफ है ?
इटली की अदालत ने जिस तरह से तेज़ी से इस मामले में फैसला सुनाया क्या राजनैतिक लाभ हानि देखकर काम करने वाले भारतीय राजनेता इस मामले में उतनी तेज़ी दिखा पायेंगें और क्या इटली की अदालत के उस फैसले के अनुरूप उन लोगों को खोज पायेंगें जिन पर रिश्वत लेने का आरोप लगा हुआ है ? निश्चित तौर पर इस मामले में कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर हमारे नेता अपने लाभ को देखते हुए या तो दूसरे दल पर हमलावर हैं या फिर एक बात के ही अपने अनुरूप अलग अलग अर्थ निकालने में लगे हुए हैं पर इस सब के बीच में देश का किस तरह से नुकसान हो रहा है यह देखने की किसी को फुर्सत भी नहीं है. अधिकांश मामलों में हमारी रक्षा खरीद सिर्फ इसलिए ही लटकी रहती है क्योंकि आज वैश्विक पटल पर अपने क्षेत्रीय एजेंटों को कम्पनियां कमीशन के रूप में कुछ हिस्सा देती हैं जबकि उसे हमारे यहाँ रिश्वत के रूप में माना जाता है अब इस कारण से हम सौदों में बिचौलियों को स्वीकार भी नहीं कर पाते हैं और उनके हस्तक्षेप के बिना सौदे होना अपने आप में असम्भव सा ही होता है. इस समस्या से निपटने के लिए जहाँ हम लोगों को एक स्पष्ट नीति बनाने की आवश्यकता है वहीं बिचौलियों की उपस्थिति पर भी स्पष्ट निर्णय लेने की ज़रुरत भी है.
यदि इस मामले में कांग्रेस या अन्य किसी नेता के साथ अधिकारी आदि का नाम स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है तो सरकार को जाँच की टीम में अधिकारियों की संख्या को बढ़ाते हुए तेज़ी से जाँच को पूरा कर उसके आधार पर दोषियों को दण्डित करवाना चाहिए. संसद और चुनावी रैलियों में इस मसले के दुरूपयोग से यह पूरा घटनाक्रम बोफोर्स की तरह से ही विवादास्पद हो जाने वाला है जिसमें आज तक कहीं से भी कुछ भी हम साबित नहीं कर सके हैं. मोदी सरकार को इटली और अन्य देशों के साथ सहयोग मांगते हुए इस जाँच को निर्णायक स्तर तक ले जाने के प्रयास करने चाहिए और जब तक कुछ हाथ नहीं आता है तब तक केवल कोर्ट की किसी टिप्पणी के आधार पर आरोप लगाने की सनसनी से बचने का प्रयास भी करना चाहिए क्योंकि भारतीय राजनैतिक कारणों के चलते पहले भी कई देश हमें अन्य मामलों में उस स्तर पर सहयोग नहीं करते हैं जिसकी अपेक्षा की जाती है. इस मामले को लटकाने के स्थान पर अब तेज़ी से अंजाम तक पहुँचाने की तरफ बढ़ना चाहिए और यदि कोई भी दोषी मिलता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी होनी चाहिए क्योंकि चुनावी मौसम में भ्रष्टाचार पर मेढ़कों की तरह टर्राने से देश का कुछ भी भला नहीं होने वाला है.

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