Menu
blogid : 488 postid : 1227232

कश्मीरी, कश्मीरियत और ज़िन्दगी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

आज़ादी के बाद से ही जिस तरह से कश्मीर घाटी को भारत पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र घोषित करवाने के लिए पाकिस्तान ने पूरा ज़ोर लगाया हुआ है उसके सभी प्रयासों के बाद भी उसे कुछ ख़ास मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है इससे हताश होकर वह अपने कुछ किराये के आतंकियों (जिन्हें वह जेहादी कहता है) के माध्यम से घाटी का माहौल बिगाड़ने की हर संभव कोशिश भी करता रहता है. १९४७ में जिस तरह से अपनी आज़ादी के बाद भारत ने खुद को संभालना शुरू किया था और बहुत सारे विवादित मसलों पर अंग्रेजों की मध्यस्थता से पाकिस्तान से बातचीत भी चल रही थी उसे देखते हुए कबाइलियों के वेश में पाकिस्तान की नियमित सेना का ओल्ड मुग़ल रोड पर कब्ज़ा करने और कश्मीर को भारत से अलग करने की कोशिशों को तत्कालीन भारतीय नेतृत्व और भारतीय सेना ने जिस तरह से विफल किया वह इतिहास का हिस्सा और आरोप प्रत्यारोप लगाने का विषय बना हुआ है. आज भी कश्मीर में इतने आधुनिकतम संचार और सुरक्षा उपकरणों के होते हुए घुसपैठ को रोक पाना आसान नहीं है तो १९४७ की इस सैन्य विहीन इलाके की में भारत की स्थिति का अंदाज़ा भी आसानी से लगाया जा सकता है.
पिछले एक महीने से कर्फ्यू झेल रही कश्मीरी जनता के पास अब कितने विकल्प शेष बचते हैं क्योंकि एक आतंकी के मारे जाने पर यदि मुट्ठी भर हुर्रियत और अलगावाद समर्थक लोग पूरी घाटी को इस तरह से जीने के लिए मजबूर कर सकते हैं तो इसके लिए केवल सरकार, सेना और प्रशासन को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. जब इतने बड़े पैमाने पर पुलिस पर सुनियोजित तरीके से हमला किया जाता है तो उससे बचने के लिए सुरक्षा बलों के पास क्या विकल्प शेष रह जाते हैं ? भारतीय सुरक्षा बलों पर जिस तरह से कश्मीरियों के दमन का आरोप लगाया जाता है उसकी सच्चाई इस बात से ही पता चल जाती है कि सुरक्षा बलों की तरफ से सीमित बल प्रयोग करने की नीति का किस तरह से अलगाववादी नाजायज़ फायदा उठा रहे हैं क्योंकि आधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा बल यदि फायरिंग करने पर आमादा होते तो उनके ३५०० से अधिक जवान भी इस संघर्ष में घायल नहीं होते. आम कश्मीरी को ही अब यह तय करना होगा कि उसके लिए आतंकियों की मौत पर इस तरह की प्रतिक्रिया देना किस हद तक सही है क्योंकि पाक समर्थक आतंकी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि आम लोगों की रोज़ी रोटी आराम से चलती रहेगी तो वे जेहाद के बारे सोचना भी नहीं चाहेंगें और उनकी नीति बुरी तरह विफल हो जाएगी इसलिए ही वह लगभग हर साल किसी न किसी बहाने से कश्मीरियों के लिए कमाई वाली वार्षिक अमरनाथ यात्रा के समय ही इस तरह से घाटी को अशांत करने की कोशिश करते हैं.
आज बहुत सारे लोग मानवीयता की बातें कर रहे हैं पर मानवाधिकार क्या आम लोगों के ही होते हैं और क्या सुरक्षा बलों में काम करने वाले चाहे वे कश्मीरी हों या कोई अन्य उनके लिए मानवाधिकारों के विकल्प बंद होते हैं ? दोनों तरफ के घायलों की संख्या को देखते हुए अब यह कहना कठिन ही है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन किस तरफ से हो रहा है ? युवाओं के मारे जाने या घायल होने पर उनके भविष्य की बातें तो की जाती हैं पर जिन युवाओं ने बेहतर भविष्य के लिए सुरक्षा बलों में जाने का विकल्प चुना उनके भविष्य के बारे में को इन सोचेगा ? क्या घाटी में तैनात सुरक्षा बल आमलोगों पर किसी तरह की ज्यादती रोज़ ही करते हैं जिसके विरोध में कश्मीरी इतने उग्र हो जाते हैं ? आज घाटी की अंदरूनी सुरक्षा व्यवस्था में जम्मू कश्मीर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल ही तैनात हैं तो सेना की भूमिका पर बिना बात के संदेह करने से क्या हासिल होने वाला है ? जम्मू कश्मीर पुलिस में भी कश्मीरी युवा हैं और अलगाववादियों के समर्थन में सड़कों पर हाथों में पत्थर लिए सामने आने वाले भी कश्मीरी युवा ही हैं पर एक कश्मीर को शांत रखने की कोशिशों में हैं तो दूसरे पाक के प्रभाव में आकर अपनों से ही लड़ने पर आमादा हैं. कश्मीरियत अगर ज़िंदा होती तो आतंकियों द्वारा केरन में मारे गए युवा शौकत के लिए भी उसका दर्द दिखाई देना चाहिए था पर आज ऐसा कुछ भी सामने नहीं आता है और पाक के चक्कर में पड़कर कश्मीरी खुद ही अपनी ज़िन्दगी को और भी परेशानी भरी करने पर आमादा दिखाई देते हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh