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घरेलू गैस सब्सिडी #गिवइटअप

***.......सीधी खरी बात.......***
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केंद्र सरकार के पास अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पिछले एक वर्ष में कच्चे तेल की कीमतों में आये बदलाव के बाद तेल क्षेत्र में कुछ अहम सुधारों की तरफ बढ़ने का बहुत ही अच्छा मौका आया हुआ है पर संभवतः आज सरकार इस अवसर का लाभ केवल अपने बजटीय घाटे को कम करने के लिए ही इस्तेमाल करना चाह रही है इसलिए ही उसने अभी तक यूपीए द्वारा बनायीं गयी तेल नीति में कोई बड़ा परिवर्तन करने के बारे में सोचना भी शुरू नहीं किया है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में आज तेल की कीमतें ५५ से ६० डॉलर प्रति बैरल पर चल रही हैं और गिरावट का यह ट्रेंड पिछले एक वर्ष से ही बना हुआ है. ईरान का मामला सुलझ जाने के बाद इसमें और भी कमी की सम्भावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है. शुरुवाती समय में सरकार की तरफ से यह कहा गया कि मंहगा तेल खरीदे जाने के कारण ही इसके दामों में कटौती नहीं की जा रही है जबकि वास्तविकता कुछ और ही थी क्योंकि जिस कीमत पर तेल खरीदा जाता है वह चार महीने बाद ही घरेलू बाजार पर लागू हो पाती है आज जो मूल्य चल रहा होता है वास्तव में वह चार महीने पहले के उस मूल्य से ही निर्धारित किया जाता है जिस पर तेल कम्पनियों द्वारा कच्चा तेल खरीदा जाता है.
मोदी सरकार के सत्ता में आने बाद ही जिस तरह से सब्सिडी छोड़ने की बात खुद पीएम की तरफ से की जाने लगी उसका ज़मीनी स्तर पर कोई विशेष प्रभाव भी नहीं दिखाई दिया क्योंकि इस मुद्दे पर कोई भी व्यक्ति लोकप्रियता के कदम उठाने से नहीं चूकता है. जब सरकार की तरफ से स्वेच्छा से यह काम करने की अपील कुछ कारगर नहीं हुई तो अब तेल कम्पनियों की तरफ से नए हथकंडे अपनाये जाने लगे हैं जिसमें आईवीआरएस के माध्यम से गैस बुक करने पर शून्य विकल्प पर जाने के साथ ही सब्सिडी एक झटके में समाप्त कर दी जाती है और इस बदले हुए सिस्टम के बारे में सरकार या कम्पनियों की तरफ से कोई जानकारी अभी तक आम उपभोक्ताओं को देने की कोई कोशिश भी नहीं की गयी है. बिना बताये इस सुविधा में परिवर्तन करने से जहाँ आज सैकड़ों लोगों को बिना पूछे ही सब्सिडी के दायरे से बाहर किया जा रहा है वहीं इसके बाद उनकी सुनवाई किस तरह से की जाये इस पर भी कोई निर्णय नहीं लिया गया है. सब्सिडी को स्वेच्छा से छोड़ने के साथ ही आय की एक सीमा के बाद आने वाले सभी लोगों की सब्सिडी समाप्त करने के बारे में सरकार को कदम उठाने चाहिए थे और सबसे पहले सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्षों, नगर निगम/ पालिका परिषद के अध्यक्षों तथा ग्राम प्रधानों के साथ इसकी शुरुवात करनी चाहिए थी और इसे प्रथम श्रेणी के राजपत्रित अधिकारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए था पर सरकार ने संभवतः इसके लिए चोर रास्ता खोजना अच्छा समझा.
जिन लोगों को सब्सिडी मिल रही है क्या उनके पास इस तरह की किसी भी सम्भावना से बचने के लिए कोई मार्ग नहीं होना चाहिए जिसमें गलती से सब्सिडी छोड़ने का विकल्प दब जाने पर भी एक बार में सब्सिडी खत्म न हो और उपभोक्ता को एसएमएस भेजकर अपनी इस मांग की पुष्टि करने के लिए भी कहा जाये. इस तरह से दोहरी व्यवस्था करने से जहाँ किसी भी गलत मेनू को दबाने से उपभोक्ता की सब्सिडी बंद नहीं होगी वहीं उसके पास अपनी इस गलती को सुधारने का मौका भी होगा. यदि सरकार की तरफ से इस तरह की कोई पहल नहीं की जाती है तो आने वाले समय में एजेंसियों पर इस समस्या से जूझने वाले उपभोक्ताओं की भीड़ बढ़ने ही वाली है जिससे निपटना सरकार के लिए मुश्किल होने वाला है. हर काम में पारदर्शिता का होना बहुत आवश्यक है पर क्या इस तरह से आम लोगों से जुड़े हुए मुद्दों पर सरकार के एकतरफा काम करने वाले सॉफ्टवेयर को चलाने की अनुमति दिया जाना सही है या इसमें दोहरी व्यवस्था करने की आवश्यकता भी है ? यह आम लोगों से जुड़ा हुआ मुद्दा है जिस पर चुप्पी लगाने से काम नहीं चलने वाला है और संसद का स्तर शुरू होने के चलते सरकार या पेट्रोलियम मंत्रालय को इस बात पर जवाब भी देना पड़ सकता है.

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