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चीन को भारतीय संकेत

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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भारत ने जिस तरह से चीन के विरोध को नज़र अंदाज़ करते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा को विवादित बताने में माहिर उसकी मंशा के अनुरूप दौलत ओल्डी बेग सेक्टर में विशाल मालवाहक जहाज से १३० जे हरक्युलिस सुपर को उतार कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है क्योंकि जिस तरह से इतने दुर्गम क्षेत्र में चीन द्वारा लगातार ही नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया जा रहा था उसके बाद पूरी दुनिया को यह लगने लगा था कि भारत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अपनी इन चौकियों और दुर्गम क्षेत्रों के बारे में लापरवाह ही रहा करता है. १९६५ के युद्ध के बाद से अनुपयुक्त पड़ी इस हवाई पट्टी को २००८ से जिस तरह से एक बार फिर से प्रयोग में लाने का प्रयास किया गया उससे भारत की इस तैयारी के बारे चीन को भी पता चल गया और संभवतः उसने दौलत ओल्डी बेग में घुसपैठ इसी क्रम में की थी कि भारत को पहले से वह अपना आक्रामक चेहरा दिखा सके ? पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जिस तरह से चीन से लगती हुई अपनी सीमा पर अपनी तरफ से पहुँच को आसान करने का हर संभव प्रयास किया है उसके बाद से चीन कुछ अधिक ही भड़का हुआ है.
भारत के इस क़दम का वैसे तो कोई महत्व उन लोगों की नज़र में कभी भी नहीं होगा जिन्हें सरकार केवल देश बेचती हुई ही दिखाई देती है क्योंकि शायद उनके पास हर बात का केवल एक ही जवाब होता है कि जब मोदी की सरकार आएगी तभी कुछ ठीक होगा पर इस अवसर पर जिस तरह से संसद को अपने हंगामे से आगे बढ़कर भारतीय सेना और वायु सेना का सर्व सम्मत समर्थन कर बधाई देनी चाहिए थी नेताओं से वह भी नहीं हुई बल्कि किसी तरफ से कुछ बड़ा कहा भी नहीं गया ? दुनिया के सबसे बड़े भारवाहक जहाज को १९६५ से अप्रयुक्त हवाई पट्टी पर इतनी आसानी से नहीं उतारा जा सकता है यदि उसकी मरम्मत का काम पहले से नहीं चल रहा होता पर भारत के इस तरह के प्रयासों से यह साबित हो गया है कि आने वाले समय में यदि चीन इस क्षेत्र में कुछ हरकत करता है तो भारत के पास वहां के जवानों तक अपनी पहुँच को लगातार बनाये रखने का एक सफल परीक्षण तो हो ही गया है जो कि चीन को कहीं से भी नहीं अच्छा लग रहा है.
इस तरह के संकेतों से केवल सामरिक महत्व की तैयारियों के बारे में ही अपने पड़ोसियों को संदेश दिए जाते हैं और साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि उस क्षेत्र विशेष में हमारी तैयारियां भी कमतर नहीं हैं पर देश में हर बात पर जिस तरह से राजनीति करने का अवसर नेताओं द्वारा ढूँढा जाता है उसकी सामरिक महत्व की बातों में कोई आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि कोई भी देश अपनी सामरिक तैयारियों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं करना चाहता है पर भारतीय विपक्षी दलों के नेता जिस तरह से हर बात में किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की सरकार को कमज़ोर दिखाने का प्रयास करते रहते हैं उसका केवल राजनैतिक कारणों से समर्थन नहीं किया जा सकता है ? जब हमारी वायु सेना इस बात को कई बार दोहरा चुकी है कि वह किसी भी क्षेत्र में किसी भी समय थल सेना को पूरी सामरिक सहायता उपलब्ध कराने में सक्षम है तो किसी भी दल को भारत सरकार पर दबाव बनाने की आवश्यकता नहीं है. भारत इतनी आसानी से विश्व में सबसे ऊंचाई पर बनी इस हवाई पट्टी पर भी अपना सबसे बड़ा भारवाहक विमान उतार सकता है यह सूचना तो अमेरिका के लिए भी चौंकाने वाली ही है क्योंकि उसने भी अपने इस विमान का कभी इतनी ऊंचाई पर इस तरह से उपयोग नहीं किया है ? ऐसा नहीं है कि भारत के इस क़दम से चीन डर जायेगा पर उसे इस बात का एहसास तो हो ही गया होगा कि अब भारत १९६५ वाला भारत नहीं रहा है और उसे किसी भी तरह से आक्रामक होने का सही और उचित जवाब भी मिल सकता है.

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