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डिजिटल इंडिया की कमज़ोर बुनियाद

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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डिजिटल इंडिया के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जिस तरह से कश्मीरियों को गोली मारने वाली एक कविता को शेयर किया गया उसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि अपने को मज़बूत कहने वाले पीएम मोदी के मंत्रालय इस तरह की हरकत करके आखिर अपनी ही सरकार और पीएम मोदी को कमज़ोर साबित करके असहज स्थिति क्यों पैदा करते रहते हैं. संघ और राहुल गांधी के विवाद में भी आकाशवाणी की तरफ से ऐसा ही राजनैतिक ट्वीट किया गया था जिस पर हंगामा होने के बाद उसे भी इस तरह से डिलीट किया गया इस मामले में ज़िम्मेदार मंत्रालय के मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी अपना बचाव करने में परेशानी का अनुभव हुआ और उन्होंने यह बताया कि मंत्रालय का ट्विटर हैंडल संभाल रही एजेंसी के कर्मचारी की गलती से ऐसा हुआ है पर इस मामले में यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि आखिर मोदी सरकार ने किस मानसिकता और राजनैतिक विचारधारा के लोगों को इतने महत्वपूर्ण कामों में लगा रखा है जिससे सरकार के लिए आये दिन ही समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं. सरकार को तो इस तरह की गलती होने पर मजबूरी में खेद व्यक्त करना ही पड़ेगा क्योंकि उसके द्वारा नियुक्त की गयी किसी भी एजंसी की तरफ से ऐसा कुछ होने पर अंत में सारी ज़िम्मेदारी उस पर ही आ जाती है.
क्या पद और गोपनीयता की शपथ में इस तरह से डिजिटल मंचों पर सरकार को एजेंसी को चुनने का अधिकार है और क्या किसी भी निजी एजेंसी की तरफ से काम करने वाला कोई भी व्यक्ति सरकार की वे सारी जानकारियां पाने के लिए उपयुक्त होता है जो कई बार नीतिगत मामलों से जुडी होती हैं ? सरकार की नीतियों को इस तरह से निजी कंपनियों के हाथों में सौंपकर मोदी सरकार क्या साबित करना चाहती है क्योंकि यह कहने से काम नहीं चलने वाला है कि इन जानकारियों से देश की गोपनीयता पर असर नहीं पड़ने वाला है. आज इस तरह के मंत्रालयों में एजेंसियों का उपयोग किया जा रहा है तो आने वाले समय में अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों में भी इसी परिपाटी को अपनाया जायेगा और देश की महत्वपूर्ण जानकारियां कुछ एजेंसियों के माध्यम से पूरी दुनिया के लिए खुल जाएँगी. क्या इन एजेंसियों में काम करने वाले लोगों पर सरकार को कोई नियंत्रण भी रहा करता है जिससे वे सरकार की नीतियों की जानकारियां अपने तक ही सीमित रख सकें और उनका किसी भी स्तर पर दुरूपयोग संभव न हो ? यदि ऐसा नहीं है तो सरकार किस तरह से देश की संवेदनशील जानकारी को किसी भी एजेंसी के माध्यम से इतना अधिक खोलने पर काम कर रही है.
किसी भी सरकार के लिए गोपनीयता के नियम बहुत कठोर होते हैं और देश में आज जिस तरह से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं की अच्छी खासी संख्या उपलब्ध है उसके बाद भी सरकार के आँख-कान के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डिजिटल मंच के लिए पूर्ण कालिक युवाओं को चयनित करने के स्थान पर आखिर सरकार इसे आउट सोर्सिंग के माध्यम से क्यों करवाना चाहती है ? क्या सरकार अपनी इस मंशा को भी स्पष्ट करेगी कि किस विचार धारा के लोगों से जुडी हुई एजेंसियों को इन महत्वपूर्ण कामों के लिए किस आधार पर चुना जा रहा है और इतनी बड़ी गलती करने के बाद क्या सरकार एक बार फिर से नए दिशा निर्देश जारी करने वाली है या वह सरकार के स्तर पर ही एक मीडिया सेल बनाकर आने वाले समय में उसके माध्यम से सभी विभागों की डिजिटल आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि २०१४ के चुनावों में जिन लोगों ने खुलेआम सोशल मीडिया पर गैर भाजपाई दलों के लिए हर स्तर पर आलोचनाओं को व्यापक स्थान दिया था आज उन्हीं लोगों को सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल थमा दिए गए हैं ? सरकार अपने स्तर से नियमानुसार कुछ भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है पर इस मामले में मनमानी का कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

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