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थोड़ी थोड़ी किया करो

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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मीडिया में बात के फ़ैलने के बाद हमारे नेता किस तरह से अपनी ही कही गयी बातों से आसानी से मुकर जाते हैं इसका ताज़ा उदाहरण यूपी के लोक-निर्माण और सहकारिता मंत्री शिवपाल यादव की घटना में एक बार फिर से देखा जा सकता है. पहले जब मीडिया इतना सक्रिय नहीं होता था तो नेता लोग कुछ भी कहा करते थे और जनता तक उनकी कोई बात पहुँच ही नहीं पाती थी पर अब जिस तरह से सुर्ख़ियों में बने रहने की चाह और संचार माध्यमों के तेज़ी से बढ़ते प्रसार ने अपनी भूमिका निभानी शुरू की है तब से रोज़ ही कहीं न कहीं कोई नेता किसी बयान को देकर उससे मुकरता दिखाई देता है. प्रदेश में आज भी भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है सभी जानते हैं बसपा सरकार के जाने और सपा के आने से इस स्थिति में कोई अंतर नहीं आया है क्योंकि जब तक सरकार में बैठे लोग ही भ्रष्टाचार को मिटाने का संकल्प लेकर आगे नहीं आयेंगें तब तक कुछ भी ठीक नहीं हो सकता है. इस बयान की स्थिति और भी विस्फोटक इसलिए हो गयी क्योंकि आजकल रामलीला मैदान में भारत स्वाभिमान की तरफ़ से भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मोर्चा खुला हुआ है.
यह सही है कि बहुत बार अनौपचारिक रूप से या फिर मज़ाक में गंभीर माहौल को हल्का करने के लिए इस तरह की हलकी फुलकी बातें की जाती है पर इसका मतलब यह नहीं है कि इतने बड़े और ज़िम्मेदारी वाले पदों पर बैठे लोग इस तरह से कुछ भी कहने लगें ? निसंदेह शिवपाल भी राजनीति के पुराने और मंझे हुए खिलाड़ी है और वे भी जानते है कि कब क्या कहना चाहिए पर इस बार वे समय की गंभीरता को भांपने में पूरी तरह से असफल रहे और जिस तरह से उनका बयान मीडिया में सामने आया वह पूरी तरह से भ्रष्टाचार का समर्थन करने वाला ही लगा. अब शिवपाल चाहे कुछ भी कहते और करते रहें पर उनके द्वारा कही गयी बातें अब जनता के सामने आ चुकी हैं. नेताओं को भी यह समझना चाहिए कि मीडिया उनके सरकार में होने के कारण उनके हाथों बिका नहीं है और साथ ही मीडिया को भी अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना ही चाहिए. सरकार के पास कई तरह के कानून होते हैं जिनके माध्यम से सरकार इन मीडिया संस्थानों की आमदनी पर रोक लगा सकती है इसलिए भी कई बार मीडिया संगठन भी दबाव में काम करने को मजबूर होते हैं.
सभी जानते हैं कि आज भी भ्रष्टाचार देश के सामने बड़ी समस्या है और शिवपाल जिन विभागों को सँभालते हैं वे काम के मामले में प्रदेश में भ्रष्टतम माने जाते हैं तो ऐसे में उनको विभाग को सुधारने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को कड़ी नसीहत देनी चाहिए थी जबकि उसका उल्टा ही दिखाई दे रहा है ? इन विभागों सहित सरकार के सभी तरह के काम-काज में जिस पारदर्शिता की आवश्यकता है वह आज भी नहीं हो पाई है और अखिलेश के सीएम बनने के बाद इस बात की आशा लगी थी कि शायद उनके युवा होने और कंप्यूटर के इस्तेमाल से परहेज़ न करने के कारण ये सुधार तेज़ी से लागू हो पायेंगें पर आज भी कुछ ठीक नहीं हो पाया है. सरकार ने जिस तरह से लोकवाणी की शुरुवात करने वाले तत्कालीन सीतापुर के जिलाधिकारी आमोद कुमार को अपना आईटी सलाहकार बनाया है उससे यह काम तेज़ी से हो सकता है फिलहाल जब तक कोई परिवर्तन नहीं होता है सीएम के चाचा जी, वरिष्ठ सपा नेता और महत्वपूर्ण मंत्री शिवपाल की सलाह पर सभी कर्मचारियों को सलाह है कि अगर सही काम करते हो तो ठीक है पर “चोरी थोड़ी थोड़ी किया करो”….

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