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दंगा राहत शिविर या आय के स्रोत ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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यूपी में सरकार का क्या रसूख है यह इस बात से ही पता चल जाता है कि प्रदेश के पश्चिमी भाग में पिछले महीने हुए दंगों के बाद अब वहां पर राहत शिविरों में रह रहे लोगों की समस्याएं खुद वही लोग बढ़ाने का काम करने में लगे हुए हैं जिन्होंने ने संकट की उस घडी में इन लोगों को सुरक्षा मुहैया करायी थी. दंगों के बाद लोगों की अपने गांवों में वापसी और पुनर्वास के तरीकों पर विचार करने के लिए स्थलीय दौरा करने के बाद सपा सरकार के मंत्रियों की सद्भावना समिति ने जिस तरह से अपनी रिपोर्ट दी है अब उसके बाद से उन मदरसा संचालकों पर उँगलियाँ उठने लगी हैं जिन्होंने लोगों को रहने की जगह और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करायी थीं ? यूपी सरकार उस समय तो अपने कारनामों से दंगों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रही थी और अब जब उसे राहत के स्थान पर लोगों को वापस उनके घरों भेजने के लिए शांति और सद्भाव समितियों के माध्यम से काम करना चाहिए तो वह केवल समितियों और रिपोर्टें तैयार करने में लगी हुई हैं.
इस तरह की समितियों से सद्भाव को किस तरह से आगे बढाया जा सकता है अब यह सोचने का समय आ गया है जिस तरह से रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सहारा देने वाले मदरसा संचालक ही नहीं चाहते कि ये लोग अपने गांवों में लौटें क्योंकि शिविरों के बंद होने से उन्हें मिलने वाली भरपूर आर्थिक सहायता स्वतः ही बंद हो जाएगी उससे यही लगता है कि आज के समय में आगे बढ़कर सहायता करने वाले हाथ भी कितनी जल्दी स्वार्थी हो सकते हैं ? इन लोगों ने मुश्किल घडी में जिस तरह से इन ग्रामीणों और सकरार की इतनी मदद की फिर आखिर ऐसा क्या हो गया है कि अब वे अपनी उस सेवा की वसूली चाहते हैं और जिन लोगों को अवैध ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिए जाने के बाद उन्हें ज़मीन दिए जाने की बात फैलाई जा रही है तो उसके पीछे कौन लोग सक्रिय हैं अब सरकार को यह भी देखना ही होगा वरना किसी भी तरह से पहले से ही परेशान इन दंगा पीड़ितों के लिए सर्दियों से पहले पुनर्वास और वापसी के लिए कुछ भी ठोस नहीं किया जा सकेगा ?
सरकार को इस तरह की रिपोर्टों पर काम करते हुए पूरे प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा समितियों के गठन के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि जब तक मिली जुली आबादी वाले क्षेत्रों में वास्तविक प्रयास नहीं किये जायेंगें तब तक कोई भी दल सरकार चला रहा हो इस तरह के दंगों को रोकना और सामजिक समरसता बढ़ाने का काम कर पाना बहुत मुश्किल ही होगा. अब शांति समितियों के ईमानदारी से गठन के बारे में सोचा जाना चाहिए और उसमें स्थानीय गणमान्य लोगों को रखना चाहिए आज के समय में यूपी की अधिकांश समितियों को यदि देखा जाये तो उनमें पुलिस ने केवल उन लोगों के नाम ही भर रखे हैं जिनसे उनको कुछ आमदनी होती है और उनके माध्यम से ही वे शांति व्यवस्था चलाने कि मंशा भी रखती है ? जो लोग अनैतिक कार्यों में लगे हुए हैं तो उन्हें सामाजिक समरसता से क्या लेना देना है क्योंकि यदि वे सही ही होते तो पुलिस उनका इस तरह से इस्तेमाल ही नहीं कर पाती. अब इन समितियों को सही स्तर पर गठित कर पूरे प्रदेश के साथ इन हिंसा झेल चुके क्षेत्रों में भी कानून का राज स्थापित करने के बारे में सोचा जाना चाहिए.

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