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दादरी – भारत पर वैश्विक दुष्प्रभाव

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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स्थानीय कारणों के चलते किसी भी सामान्य सी घटना के भारत की संभावनाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभवाों को समझते हुए अब मोदी सरकार भी उस डैमेज कंट्रोल में लग चुकी है जिससे उसके देशवासियों को दिखाए जाने वाले बड़े बड़े सपनों के टूटने के संभावित खतरों पर चर्चा करना भी शामिल है. केंद्र सरकार और भाजपा जिस तरह से अभी तक इस तरह की किसी भी साम्प्रयादिक उन्माद की घटनाओं के चलते उस पर चुप रह जाने की नीति अपनाया करती थीं अब सरकार में होने के कारण उनके लिए इस रास्ते पर चलना मुश्किल हो गया है और उनकी कथनी व करनी का अंतर भी महसूस होने पर ही विदेशों से ही मोदी सरकार ने एक नीति के तहत ही बयानबाज़ी शुरू कर दी है. इसी क्रम में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक व्याख्यान के बाद पत्रकारों से बोलते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दादरी जैसी घटनाओं को देश की छवि बिगाड़ने वाला बताया है क्योंकि वित्त मंत्री होने के नाते पूरी दुनिया से निवेश को आकर्षित करने और उसके हिसाब को देश के सामने रखने की सबसे अधिक ज़िम्मेदारी तो उनकी ही बनती है. राजनैतिक लाभ के चलते सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने वालों के खिलाफ जब तक देश में मोदी सरकार ही कड़े कदम नहीं उठाती है तब तक किसी भी दशा में परिस्थितियों को निवेश के अनुकूल नहीं किया जा सकता है.
दादरी कांड पर पहली बार जिस तरह से भाजपा और खुद मोदी बेहद दबाव महसूस कर रहे हैं अब उन्हें देश चलाने के लिए देश के ताने बाने के बने रहने की आवश्यकता का एहसास भी हो रहा होगा क्योंकि अभी तक इस तरह के मामलों पर केवल केंद्र सरकार को ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जवाब देना पड़ता है और शायद पहली बार यह स्थिति सामने आई है जिसमें भाजपा और मोदी को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो रहा है.यह देश के लिए बहुत अच्छा ही है कि कम से कम इस घटना के बाद खुद देश चला रहे नेताओं और पीएम को इस बात की तपिश महसूस होने लगी है क्योंकि निवेश के लिए केवल मज़बूत आर्थिक नीतियों की ही आवश्यकता नहीं होती है इसके साथ देश के राज्यों में निवेश के लायक माहौल बनाये जाने की भी बहुत आवश्यकता होती है. भाजपा का जन्म ही संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में ही हुआ है तो वह और उसके नेता हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र के उस सपने के लिए कुछ न कुछ करते ही रहते हैं जिसके लिए संघ ने काम करना शुरू किया था और जो आज भी संघ का प्रमुख एजेंडा हुआ करता है. देश के सामाजिक ताने बाने के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ करने के साथ ही देश की प्रगति के सपने को उतनी तेज़ी से पूरा नहीं किया जा सकता है जिसकी आज देश में क्षमता है और जिस स्तर तक पीएम मोदी उसे पहुँचाना चाहते हैं.
भाजपा के लिए यह समय अब उग्र हिंदुत्व और मध्यमार्गी राजनीति में से किसी एक को चुनने का है क्योंकि देश के बाहर विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रयासरत पीएम के प्रयासों का देश को आने वाले समय में कितना वास्तविक लाभ मिलेगा यह तो समय ही बता पायेगा पर उसके लिए भी देश के अंदर हर राज्य में माहौल भी अच्छा होने के बारे में विदेशी कंपनियां संतुष्ट होना चाहेंगीं. क्या तेल आदि से संपन्न इराक आदि देशों में आज कोई बहुराष्ट्रीय कम्पनी नया निवेश करने की तरफ सोच भी सकती है क्योंकि जिस माहौल में वहां कुछ भी स्थायी नहीं है तो वहां पर किस स्तर का व्यापर संभव हो पायेगा यह सभी जानते हैं. भाजपा की तरफ से भी जिस तरह की कुछ सुगबुगाहट शुरू हुई है जिसमें दादरी कांड की निंदा की जानी शुरू हो चुकी है तो उसे क्या स्थायी माना जाये या फिर उसे भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के द्वारा पड़ने वाले संभावित दबाव में मोदी सरकार की एक कोशिश ही माना जाये ? यदि पीएम मोदी इस बात के लिए गंभीर हैं तो उन्हें खुद इस मसले पर अपनी पार्टी को सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने की ज़रुरत को समझना ही होगा क्योंकि इसमें आगे आने के बाद अब यदि देश के अंदर का माहौल और भी अधिक ख़राब होता है तो उनके देश की आर्थिक प्रगति को नए स्तर तक पहुँचाने के सपने को बड़ा धक्का ही लगने वाला है.
भारत के बहुलतावादी समाज में राजनेताओं के अनावश्यक दखल के चलते जिस तरह से रोज़ ही नयी समस्याएं उत्पन्न होती हैं आज उनका स्थायी समाधान खोजने की ज़रुरत है. २०१७ में यूपी के आम चुनाव आज से ही सभी दलों के लिए बहुत ही चिंता का विषय बने हुए हैं और आज दादरी जैसी किसी भी घटना को एक शांत से गांव में अंजाम देने के पीछे एक सोची समझी रणनीति भी हो सकती है क्योंकि जब तक ऊपर से स्थानीय नेताओं को खुली छूट न मिली हो तो वे इतने बड़े स्तर पर कदम उठाने की सोच भी नहीं सकते हैं. पश्चिमी यूपी के केवाल कांड के बाद पिछले आम चुनावों में पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में किस हद तक वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था यह सभी देख चुके हैं और उस तरह की परिस्थितियां एक बार फिर से बनती हुई नज़र आने लगी हैं क्योंकि आज सोशल मीडिया के चलते जिस हद तक विद्वेष को फ़ैलाने का काम शुरू किया जा चुका है वह लापरवाही करने पर बहुत बड़ी समस्या के रूप में देश के सामने भी आ सकता है. निश्चित तौर पर इस ध्रुवीकरण का लाभ पहले गैर भाजपाई दलों को मिलता रहा है पर अब बदली हुई परिस्थितियों में इसका अधिक लाभ भाजपा के खाते में जा रहा है तो खुद भाजपा की राज्य इकाइयां भी इस स्थिति को आसानी से क्यों बदलने देना चाहेंगीं जिसमें बिना किसी मुद्दे के ही थोक के भाव वोट मिलने की पूरी संभावनाएं बनती हैं. अब समय आ गया है कि पीएम मोदी को केवल अंतराष्ट्रीय मंचों के अतिरिक्त खुद देश के अंदर भी इस तरह की घटनाओं के बारे में कड़े शब्दों में बोलना ही होगा वर्ना उनकी देश को आर्थिक रूप से मज़बूत करने के सपने के पूरा होने में संदेह उत्पन्न होता है.

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